“तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, ये आंकड़े झूठे है ये दावा किताबी है!” भूख से नेमचंद्र की मौत और प्रदेश सरकार आंकड़ों और फाइलों का हवाला देने में व्यस्त! शर्मनाक!
82 साल की लाचार बूढ़ी मां के सामने भूख से मर गया उसका लकवे से ग्रशित बेटा :
मां बोली- शरीर में भीख मांगने की भी ताकत होती तो बचा लेती
उत्तर प्रदेश में 42 साल के एक शख्स की कथित तौर पर भूख से मौत हो गई है। ये शख्स तीन दिनों से खाना नहीं खाया था। पीड़ित शख्स का नाम नेमचंद है और वह बरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर कुदरिया इख्लासपुर गांव का रहने वाला है। कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य भर के अधिकारियों, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट से लेकर गांव के प्रधान और सचिव शामिल हैं, को कहा था कि अगर उनके इलाके में भूख से कोई भी मौत होती है तो उसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाएगा। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक लेखपाल शिवा कुशवाहा ने अपने प्राथमिक जांच में कहा कि पड़ोसियों ने उसे बताया कि नेमचंद को लकवे की बीमारी थी, उसकी हालत बहुत खराब थी और उसने पिछले तीन दिनों से कुछ नहीं खाया था क्योंकि वह चलने-फिरने में असमर्थ था। नेमचंद की 82 साल की बूढ़ी मां अपने बेटे को खोकर सन्न है। लाचारी भरी आवाज में इस बुजुर्ग महिला ने कहा कि 10 दिन पहले ही बेटे की दवा लाने के लिए उसने राशन में मिले अनाज और केरोसीन को बेच दिया था।
बुजुर्ग महिला ने कहा कि अब उसके शरीर में इतनी भी ताकत नहीं है कि वह घर से बाहर निकलकर भीख मांग सके, अगर उनके अंदर इतनी भी हिम्मत होती तो वह अपने बेचे को बटा लेतीं। नेमचंद की मां ने कहा कि चार दिन पहले पड़ोसियों ने उन्हें कुछ रोटियां दी थी। मंगलवार सुबह को इस महिला ने बेटे को कुछ बची-खुची रोटियां खाने को दी, लेकिन बीमारी की वजह से वह खा नहीं सका। मां-बेटे दोनों इतने कमजोर थे कि दोनों दो दिन तक अपनी जगह से हिल नहीं सके। तीसरे दिन नेमचंद की मौत हो गई। पड़ोसियों के मुताबिक नेमचंद नाई का काम करता था, लेकिन दो साल पहले उसे लकवे का अटैक हुआ और उसने काम पर जाना छोड़ दिया। नेमचंद की शादी नहीं हुई थी और वह अपने मां के साथ अकेला रहता था। उसके घर मिट्टी के बने हुए थे और उसमें कोई दरवाजे नहीं थे। नेमचंद के घर का चूल्हा बुझा पड़ा हुआ था, ऐसा लग रहा था कि इस चूल्हें में कई दिनों से आग नहीं जलाई गई है।
बुजुर्ग महिला ने कहा कि अब उसके शरीर में इतनी भी ताकत नहीं है कि वह घर से बाहर निकलकर भीख मांग सके, अगर उनके अंदर इतनी भी हिम्मत होती तो वह अपने बेचे को बटा लेतीं। नेमचंद की मां ने कहा कि चार दिन पहले पड़ोसियों ने उन्हें कुछ रोटियां दी थी। मंगलवार सुबह को इस महिला ने बेटे को कुछ बची-खुची रोटियां खाने को दी, लेकिन बीमारी की वजह से वह खा नहीं सका। मां-बेटे दोनों इतने कमजोर थे कि दोनों दो दिन तक अपनी जगह से हिल नहीं सके। तीसरे दिन नेमचंद की मौत हो गई। पड़ोसियों के मुताबिक नेमचंद नाई का काम करता था, लेकिन दो साल पहले उसे लकवे का अटैक हुआ और उसने काम पर जाना छोड़ दिया। नेमचंद की शादी नहीं हुई थी और वह अपने मां के साथ अकेला रहता था। उसके घर मिट्टी के बने हुए थे और उसमें कोई दरवाजे नहीं थे। नेमचंद के घर का चूल्हा बुझा पड़ा हुआ था, ऐसा लग रहा था कि इस चूल्हें में कई दिनों से आग नहीं जलाई गई है।