ब्रह्मपुत्र नदी पर तिब्बत मे बनी तीन झीलें भारत में ला सकती है केदारनाथ से कई गुना ज़्यादा तबाही

पूर्वोत्तर भारत के एक बडे़ हिस्से में भारी तबाही का खतरा मंडरा रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बनी तीन झीलें कभी भी कहर बरपा सकती हैं। भारत के साथ चीन भी इसकी चपेट में आ सकता है। चीन सीमा पर तिब्बत के क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी में पिछले दिनों भूकम्प आने से हुए भूस्खलन से बनी इन तीन झीलों के टूटने से भारी तबाही की कल्पना नहीं की जा सकती। वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि इन झीलों की वजह से कभी भी इस क्षेत्र में बड़ा भूकम्प आ सकता है। ऐसा हुआ तो झीलों के टूटने से चीन से लेकर भारत के असम और अरुणाचल प्रदेश तक भारी तबाही मच जाएगी। ये झीलें टूटीं तो गुजरात के भुज और उत्तराखंड के केदारनाथ आपदा से ज्यादा तबाही मचा सकती हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के जल संसाधन विकास व प्रबंधन विभाग के प्रोफेसर जल विज्ञानी नयन शर्मा का कहना है कि पिछले साल करीब डेढ़ महीने पहले 17 नवंबर को 6.4 तीव्रता का भूकम्प आने से वहां तीन झीलें बन गई थीं, जिनमें लगातार पानी का दबाव बढ़ता जा रहा है। जिस क्षेत्र में ये झीलें बनी हैं, उस क्षेत्र में सौ से ज्यादा ग्लेशियर हैं। तापमान बढ़ने पर इन ग्लेशियरों के पिघलने से इन तीनों झीलों में पानी की मात्रा कई गुना बढ़ जाएगी, जिससे इन झीलों के टूटने का खतरा और भी अधिक बढ़ जाएगा।

प्रो. शर्मा का कहना है कि जहां ये झीलें बनी हुई हैं, वह जगह भारत की ब्रह्मपुत्र नदी की सीमा से 139 किलोमीटर दूर तिब्बत के यांगची के पास है। इन झीलों में अभी तक करीब एक बिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी इकट्ठा हो चुका है, जो लगातार बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे तापमान बढेÞगा तो इन झीलों में और तेजी से पानी जमा होने से इनके टूटने का और अधिक खतरा पैदा हो जाएगा। इस खतरे से बचने के लिए चीन को साथ में लेकर काम करने की जरूरत है। इन तीनों झीलों की मौजूदगी का खुलासा प्रोफेसर नयन शर्मा ने अपने शोध में किया है। प्रोफेसर शर्मा बताते हैं कि 2000 में भी ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी योवांग सांगपो में इसी तरह से झील बन गई थी, जिसके टूटने से भारी तबाही मची और हजारों जानें गइ थीं। इस बार खतरा ज्यादा बड़ा है, क्योंकि इससे असम की घनी आबादी वाले डिब्रूगढ़ और पासीघाट जैसे इलाके इसकी चपेट में आएंगे, जहां बाकी  लाखों की आबादी है। इन झीलों के टूटने से पानी दो किलोमीटर की ऊंचाई से करीब 40 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से गिरेगा। सरकार को इस खतरे को कम करने के लिए अभी से कदम उठाने होंगे। इसके लिए वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम का गठन कर इन झीलों पर अभी से निगरानी शुरू कर देनी चाहिए।

उन्होंने खतरे को कम करने के लिए केंद्र सरकार को चार सुझाव दिए हैं। पहला, झीलों के जल स्तर को कम करने के लिए कंट्रोल ब्लास्टिंग तकनीक से छोटे-छोटे विस्फोट कर झीलों से पानी का स्तर कम किया जा सकता है। दूसरा, झीलों के टूटने की हालात में इसकी तीव्रता को कम करने के लिए वायरक्रेट रैंप तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। इस तकनीक में बडे़-बडे़ वायरके्रट रैम्प यानी बडेÞ विशालकाय पत्थर नदी में जगह-जगह जीआइ वायर के जाल में रखकर लगाए जाते हैं, जिससे अचानक पानी आने से उसकी तीव्रता कम हो जाती है। तीसरा, झीलों पर सेटेलाइट से निगरानी रखी जाए और चौथा, झीलों की गहराई का पता लगाया जाए। इसके लिए लेडर तकनीक का प्रयोग कर इनकी गहराई का पता लगाया जा सकता है।  आइआइटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सत्येंद्र मित्तल का कहना है कि भूगर्भीय रिसाव से इन झीलों के टूटने का बड़ा खतरा है। ऐसी झीलें जब बनती हैं तो वहां छोटे-छोटे भूकम्प आते रहते हैं।

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