भाई को साइकिल दिलाने के लिए 12 साल की लड़की तोड़ रही पत्थर, कहानी सुनकर नम हो जाएंगी आंखें
रोतना की कहानी को जानेमाने बांग्लादेशी फोटोग्राफर जीएमबी अकाश ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया है। सोशल मीडिया पर रोतना की कहानी को पढ़कर लोगों की आंखे नम हो गई हैं और वे इसे लोग काफी शेयर कर रहे हैं।
हम नहीं जानते हैं कि जिंदगी कब किस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दे, जो कि जीने के लिए काफी मुश्किल हो जाती है। मुश्किल की घड़ी में इसका सबसे ज्यादा असर
बच्चों पर पड़ता है। ऐसा ही कुछ बांग्लादेश की रोतना अख्तर के साथ भी हुआ, जिसने छोटी सी ही उम्र में अपनी विधवा मां का बोझ कम करने के लिए काम करना शुरु कर दिया था।
पोस्ट के अनुसार रोतना ने बताया “जब मैं 6 साल की थी तो मेरे पिता की सड़क हादसे में मौत हो गई थी, जिसके बाद हम सड़क पर रहने के लिए मजबूर हो गए। कई दिनों तक हमने कुछ खाया भी नहीं था। हमारे पास न पैसे थे और न ही चावल। हम अपने एक कमरे के घर का किराया भी नहीं दे पा रहे थे।” अब 12 वर्ष की हो चुकी रोतना ने कहा “पिता की मौत के कुछ दिनों बाद ही मेरी मां ने पत्थर तोड़ने वाली एक फैक्टरी में काम करना शुरु कर दिया था। उस वक्त मां की शारीरिक और मानसिक स्थित दोनों ही ठीक नहीं थी। उनकी आंखे हमेशा अपने पति की याद में रोती थीं। हर रात मैं उन्हें अपने छोटे भाई को पकड़े हुए रोते देखती। हमारे परिवार में हम तीन सदस्यों के अलावा और कोई नहीं है, क्योंकि मां और पापा ने लव मैरिज की थी, इसलिए उनके परिवार ने उन्हे नहीं अपनाया।”
My father died in a road accident 6 years ago which left us on the street. For several days we ate nothing. We had no money and no rice at our home. We could not pay the rent of our one room house. My mother then started working in this brick breaking factory after only a few days of my father’s death. She was not even physically and mentally ready after losing my father. Her eyes were still wet for her loving husband. I saw her crying every night holding my younger brother.…
रोतना ने कहा “शादी के बाद दोनों ढाका आ गए थे और यहां पापा रिक्शा चलाने का काम करने लगे। पिता के जाने के बाद मां ने काम करना शुरु तो किया लेकिन उनकी कमाई से हमारा गुजारा नहीं हो पा रहा था। मैं उन्हें सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करते हुए नहीं देख पा रही थी, इसलिए मैंने 6 साल की उम्र में ही उनका हाथ बंटाने का फैसला किया। जब मैं पहले दिन अपनी मां के साथ काम कर रही थी तो उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और जोर-जोर से रोने लगीं। वे कभी नहीं चाहती थीं कि मैं उनके साथ इतनी छोटी उम्र में काम पर जाऊं।”
“मेरे पिता का हमेशा से सपना था कि वे मेरे भाई और मुझे स्कूल भेजकर अच्छी शिक्षा दिलाएं। पहले दिन मैंने मुश्किल से 30 ईंट तोड़ी जिसका मुझे 30 टका मिला लेकिन अब मैं 125 ईंट तोड़ती हूं। अब मैं इतना कमा सकती हूं कि मैं अपने भाई राणा की शिक्षा का भार उठा सकूं। वह पढ़ाई में बहुत अच्छा है और इस साल वह कक्षा में दूसरे नंबर पर आया था। पिछले 6 महीनों से में ज्यादा घंटे काम को दे रही हूं ताकि ज्यादा पैसे इकट्ठा करके अपने भाई को एक साइकिल दिला सकूं। उसके पास साइकिल होगी तो वह दूर ट्यूशन क्लास पैदल जाने के बजाए इसपर जा सकेगा जिससे वह थकेगा भी नहीं। मेरा भाई मुझसे कहता है कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं नौकरी करुंगा और आपको बिलकुल भी काम नहीं करने दूंगा।”