Makar Sankranti 2018: खिचड़ी दान कर पितरों का किया जाता है तर्पण, जानें क्या है संक्रांत का महत्व
हमारे देश में हर साल मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण की खुशी में मनाया जाता है। एक वर्ष में 12 संक्रांतियां आती हैं, जिसमें से 6 संक्रात उत्तरायण और 6 दक्षिणायन की कहलाती हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है जो आषाढ़ मास तक रहता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से गोचर करके मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारंभ होती है। भारत के कई स्थानों पर इसे उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु में संक्रांत को पोंगल नामक उत्सव के रुप में मनाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त में स्नान और दान करके पुण्य कमाने का महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। कई स्थानों पर इस दिन मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी दान करने की परंपरा भी माना जाती है। मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ा का प्रसाद बांटा जाता है। कई स्थानों पर पतंगे उड़ाने की परंपरा भी है। इस पर्व को पूरे भारत में विभिन्न रुपों में मनाया जाता है। उत्तर भारत के पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी के रुप में मनाया जाता है। इसी के साथ तमिलनाडु में इस प्रमुख रुप से पोंगल के नाम से जाना जाता है। विशेषकर ये पर्व नई फसल की बुवाई और कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता है और किसानों के लिए इसे प्रमुख त्योहार माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन गंगास्नान का महत्व माना जाता है। पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयाग में माघ मेला लगता है और संक्रांत के स्नान को महास्नान कहा जाता है। इस दिन हुए सूर्य गोचर को अंधकार से प्रकाश की तरफ बढ़ना माना जाता है। माना जाता है कि प्रकाश लोगों के जीवन में खुशियां लाता है। इसी के साथ इस दिन अन्न की पूजा होती है और प्रार्थना की जाती है कि हर साल इसी तरह हर घर में अन्न-धन बना रहे।