मेरी कॉम का सफर कब तक!

रियो डि जनेरियो ओलंपिक में हिस्सा लेकर खेल करिअर पर विराम लगाने का मेरी कॉम का सपना तो पूरा नहीं हो पाया। ओलंपिक के लिए वे क्वालीफाइ नहीं कर पार्इं तो मान लिया गया कि उनका सफर खत्म। राज्यसभा के लिए उनके मनोनीत होने से इसकी संभावना और बढ़ गई। इन कयासों के बीच करीब एक साल तक रिंग से दूर रहने वाली मेरी कॉम ने जून में उलन बटोर (मंगोलिया) में हुई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में 51 किलो वर्ग में हाथ आजमाया लेकिन क्वार्टर फाइनल में वे हार गईं। अब वे नवंबर में होने वाली एशियाई चैंपियनशिप और 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए तैयारी कर रही हैं। उलन बटोर के अनुभव के बाद मेरी कॉम फिर 48 किलो वर्ग में अपनी चुनौती पेश करेंगी। जिज्ञासा यह है कि 2002 से 2012 तक  मेरी कॉम का जो जलवा रहा क्या उसे वे दोहरा पाएंगी?

अपनी ताजा कोशिश में मेरी कॉम कितनी सफल हो पाती हैं, यह बाद की बात है। फिलहाल तो मेरी कॉम की पिछली उपलब्धियों और भारतीय महिला मुक्केबाजी को नई ऊंचाई तक ले जाने में योगदान को नकारा नहीं जा सकता। मणिपुर के किसान परिवार की लड़की से विश्व मुक्केबाजी में लगातार धमक मचाने वाली मेरी कॉम की सफलता का सफर जितना रोमांचक रहा है, उतना ही कष्टप्रद भी। कई तरह के उतार-चढ़ाव उन्होंने देखे। सामाजिक विरोध का मुकाबला किया। इसीलिए वे न सिर्फ पूर्वोत्तर की बल्कि महिला सशक्तिकरण की आदर्श मिसाल बन गईं। पांच बार वे विश्व विजेता रहीं। 2002 में अंताल्या में उन्होंने 45 किलो के वजन वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। 2005 में पोदोल्स्की में 46 किलो वर्ग में, इसी वजन वर्ग में 2006 में नई दिल्ली और 2008 में निगंबो में हुई विश्व प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदक का चौका पूरा किया। 2010 में ब्रिजटाउन की विश्व प्रतियोगिता में वे 48 किलो के वर्ग में उतरीं और फिर अव्वल रहीं। मेरी कॉम की इन सफलताओं को सामान्य बताने वालों का तर्क था कि विश्व प्रतियोगिता में मुकाबला ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होता। कहा गया कि अगर मेरी में हुनर है तो एशियाई खेलों में वे वैसी सफलता क्यों नहीं दोहरा सकीं।

दो बच्चों की मां बनने के बाद पांचवी बार विश्व प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली मेरी कॉम ने इस चुनौती को भी स्वीकार किया। दिक्कत यह रही कि मुक्केबाजी संघ वजन वर्ग बदलता रहा। मेरी कॉम ने आखिरी विश्व प्रतियोगिता 48 किलो वर्ग में जीती थी। उसे खत्म कर 51 किलो का वजन वर्ग बना दिया गया। 2010 के ग्वांग झू एशियाई खेलों में इस वजन वर्ग में मेरी कॉम कांस्य ही जीत पाईं। 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पाने के बाद 2014 के इंचियोन एशियाड में उन्होंने स्वर्ण पदक जीत कर आलोचकों को करारा जवाब दिया।
यह सुनहरा सफर अब आखिरी पड़ाव पर है। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि मेरी कॉम का पहले वाला जलवा नहीं रहा है। यह अस्वाभाविक भी नहीं है। वे 34 साल की हो गईं हैं। तीन बच्चों की मां हैं। राज्यसभा के लिए मनोनीत हो चुकी हैं। ऐसे में एकमात्र लक्ष्य बनाने की स्थिति में वे नहीं है। लेकिन जो ताकत उनके पास है वह है दृढ़ संकल्प शक्ति की। इसी के दम पर वे चमत्कार दिखा दें तो कोई ताज्जुब नहीं।

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