राजपाटः गुरु मंत्र-समाज सुधारक बन गए बिहार के सीएम नीतीश कुमार!
नीतीश ने भी अपने अघोषित गुरु से लोकप्रियता का नुस्खा ले लिया है। वैसे भी ज्यादातर नेताओं का अनुभव तो यही है कि अपने देश में आर्थिक विकास की फिक्र करने से कुछ होता नहीं। यहां तो लोगों को भरमाने से होता है असली फायदा। लिहाजा बिहार के मुख्यमंत्री अब समाज सुधारक की भूमिका में उतर पड़े हैं और सूबे में दहेज कुप्रथा के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। न दहेज लो और न दहेज दो, नारा है सुशासन बाबू का। सरकार अपनी है तो सरकारी अमला अपने आप जुटेगा। जिस तरह केंद्र ने तीन तलाक के खिलाफ कानून लाकर मुसलिम महिलाओं का दिल जीतने की कोशिश की है, नीतीश भी उसी तर्ज पर सूबे की आधी आबादी से भावनात्मक तार जोड़ने की जुगत में हैं। उन्हें लगता है कि शराबबंदी के फैसले से महिलाएं उनके पक्ष में झुकी हैं।
पर विरोधी खुलकर न सही, दबी जुबान से तो इसे नौटंकी से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं। तभी तो सवाल खड़ा कर दिया है कि जिस तरह शराबबंदी के लिए कानून बना कर पुलिस का इस्तेमाल किया अगर गंभीर हैं तो वही कवायद दहेज की बुराई के मामले में करने से क्यों कतरा रहे हैं। कम से कम अपने विधायकों, कार्यकर्ताओं और मंत्रियों को ही दिला दें शपथ कि वे दहेज लेंगे न देंगे। लेकिन नीतीश को इस तरह की नुक्ताचीनी से फर्क नहीं पड़ रहा। है भी तो ठीक। किसकी मजाल है कि खुलकर बड़ी सामाजिक बुराई को सही ठहरा पाए।