दोहरे मापदंड
हज यात्रा पर सब्सिडी खत्म करना केंद्र सरकार का एक स्वागतयोग्य और साहसिक फैसला है। यह सर्वोच्च न्यायालय के 2012 के निर्देश के अनुसार लिया गया है, जिसमें उसने 2022 तक हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करने का निर्देश दिया था। इससे 700 करोड़ रुपए की बचत होगी। सरकार ने यह राशि मुसलिम महिलाओं की शिक्षा पर खर्च करने की घोषणा की है। यहां गौरतलब यह भी है कि भाजपा हज सब्सिडी को फिजूलखर्ची बता रही थी, लेकिन दूसरी तरफ उसने हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले जारी दृष्टि पत्र में चारधाम यात्रा पर सब्सिडी देने का वादा किया था। भाजपा सरकारों को ऐसे दोहरे मापदंड नहीं अपनाने चाहिए। सरकार का हज यात्रा पर सब्सिडी खत्म करना अल्पसंख्यक विरोधी नहीं लगना चाहिए, इसलिए केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों को सभी धार्मिक यात्राओं और धार्मिक आयोजनों पर खर्च बंद करना होगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारें ऐसी यात्राओं और आयोजनों पर करोड़ों रुपए लुटा रही हैं।
केंद्र सरकार ने इलाहाबाद कुंभ पर 1150 करोड़, मध्यप्रदेश ने सिंहस्थ कुंभ पर 3000 करोड़ और महाराष्ट्र ने नाशिक कुंभ पर 2500 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2019 के अर्धकुंभ के लिए 2500 करोड़ रुपए रखे हैं। हरियाणा गीता महोत्सव पर सौ करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। इस खर्च को हालांकि इन आयोजनों में बड़ी संख्या में जुटे श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के इंतजामात के खाते में डाल कर उचित ठहराया जाता है लेकिन खट्टर सरकार के 3.8 लाख रुपए में दस ‘गीता’ खरीद कर इतिहास रचने को क्या कहा जाए? मध्यप्रदेश सरकार तो देश के साथ-साथ विदेश में धार्मिक यात्राओं के लिए पैसा देती है। राजस्थान सरकार हवाई जहाज से मुफ्त में धार्मिक यात्राएं कराती है। बदलाव की राजनीति का दावा करने वाली दिल्ली की आप सरकार भी मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना शुरू कर रही है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल को छोड़ कर हर राज्य सरकार धार्मिक यात्राओं पर पैसा खर्च करती है। हालांकि तेलंगाना के मुख्यमंंत्री के चंद्रशेखर राव पर सरकारी खजाने से मंदिरों में करोड़ों रुपये के गहने दान करने के अरोप लग चुके हैं।
इस सबके बीच एक अच्छी मिसाल पंजाब की कांग्रेस सरकार ने स्थापित की है। उसने मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना बंद कर दी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को इस मामले में पंजाब के नक्शेकदम पर चलना चाहिए। एक धर्मनिरपेक्ष देश की सरकारों को करदाताओं का पैसा धार्मिक गतिविधियों पर खर्च नहीं करना चाहिए। इससे बची राशि का इस्तेमाल शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए करना चाहिए।
’संदीप सिंह, लुधियान