भय का राज
हरियाणा में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद चिंताजनक हो चुकी है। पिछले दस-ग्यारह दिनों में प्रदेश में सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटनाओं से साफ है कि राज्य में राजकाज का क्या आलम है। अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि दिनदहाड़े कॉलेज छात्रा को अगवा कर लेते हैं और फिर कार में बलात्कार कर फेंक जाते हैं। दूसरी ओर ऐसी घटनाओं को रोक पाने में नाकाम पुलिस के बरक्स अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आरसी मिश्रा का यह गैरजिम्मेदाराना बयान सामने आता है कि बलात्कार की घटनाएं समाज का हिस्सा हैं और अनंतकाल से चली आ रही हैं। जाहिर है, राज्य पुलिस की दशा और मानसिकता क्या है! दस दिन में बलात्कार की आठ और चार दिन के भीतर छह वारदातें किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक हैं। लेकिन राज्य की पुलिस यह जता रही है, मानो सब कुछ सामान्य है।
प्रदेश में बलात्कार-हत्या जैसी घटनाओं का ताजा सिलसिला तेरह जनवरी को शुरू हुआ जब जींद में नहर के पास पंद्रह साल की एक दलित लड़की की लाश मिली थी। इस लड़की के साथ हुई दरिंदगी ने लोगों को दिल्ली के निर्भया कांड की याद दिला दी। इतना ही नहीं, इस मामले के एक नामजद आरोपी की भी हत्या हो गई। पूरी घटना से लगता है कि शायद इसके तार कहीं और हों, और पूरे मामले को छिपाने-सबूत मिटाने का खेल चल रहा हो। हद तो यह कि इस घटना के बाद नाबालिग बच्ची से लेकर शादीशुदा महिला तक के सामूहिक बलात्कार की घटनाएं सामने आर्इं। बीते गुरुवार को हरियाणवी लोकगायिका ममता शर्मा की लाश मिली। चार दिन से लापता ममता शर्मा की गला रेत कर हत्या कर लाश गन्ने के खेत में फेंक दी गई।
लाश रोहतक जिले के जिस बनियानी गांव में मिली वह मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का गांव है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अपराधी कितने बेखौफ हो चुके हैं! सवाल है कि सरकार आखिर कर क्या रही है। जनता के गुस्से और अपनी एक राज्य सरकार की किरकिरी से परेशान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री खट्टर को दिल्ली तलब किया। राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने प्रदेश के पुलिस प्रमुख बीएस संधू को बुला कर हालात पर चर्चा की। पुलिस प्रमुख ने बताया कि पंद्रह साल तक की लड़कियों से बलात्कार के मामले में त्वरित अदालतें बनाने और सजा के कड़े प्रावधानों पर विचार किया जा रहा है। सरकार दुष्कर्म के ऐसे मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान की सिफारिश कर सकती है, जैसा कि मध्यप्रदेश सरकार ने कदम उठाया है।
हरियाणा में महिलाओं का खौफ में जीना कोई नई बात नहीं है। चाहे खापों के अमानवीय फैसले हों, या डेरों के कारनामे हों, या फिर आपराधिक वारदातें, सबकी सबसे ज्यादा शिकार स्त्रियां ही हुई हैं। लेकिन राज्य सरकार का रवैया अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहने के बजाय उदासीनता का ही रहा है। राजनीतिक पार्टियां वोट का खयाल कर न अमानवीय पंचायती फैसलों के खिलाफ बोलती हैं न संदिग्ध बाबाओं के खिलाफ। जिनकी पहुंच सत्ता के गलियारे तक है, ऐसे भी कई लोग अपने को कानून से ऊपर समझने से बाज नहीं आते। पिछले साल अगस्त में हरियाणा भाजपा अध्यक्ष के बेटे ने राज्य के एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी की बेटी के साथ छेड़छाड़ की थी। जाहिर है, अपने पिता के राजनीतिक रसूख के बल पर ही उसने यह दुस्साहस किया होगा। सवाल है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली सरकार आखिर बेटियों की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही है!