बवाना: नहीं थे आग से निपटने के बुनियादी इंतजाम

निर्भय कुमार पांडेय

बवाना औद्योगिक क्षेत्र में पटाखे के एक कारखाने में भीषण आग लगने के बाद अफरा-तफरी का माहौल बन गया और हर तरफ चीख-पुकार मच गई। अपनी जान बचाने के लिए कुछ मजदूर तीसरी मंजिल से नीचे कूद गए। इस कारण कई मजदूर गंभीर रूप से जख्मी भी हो गए। बारूद होने की वजह से चंद मिनटों में आग ने पूरे कारखाने को अपनी चपेट में ले लिया था। जानकारों की मानें, तो कारखाने में आगजनी पर काबू पाने के लिए प्रारंभिक स्तर पर ऐसे उपकरण नहीं थे, जिससे तुरंत आग पर काबू पाया जा सके। यही कारण है कि वहां काम करने वाले मजदूर चाह कर भी कुछ कर नहीं पाए।  वहीं, सूचना मिलने के बाद पहुंचे दिल्ली दमकल के कर्मचारियों को आग पर काबू पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। आगजनी की चपेट में आने से 17 मजदूर अपनी जान गंवा बैठे थे और कई मजदूर झुलस गए थे। चश्मदीदों ने बताया कि कारखाने में काम करने वाली महिलाएं मदद की गुहार लगाती दिखीं, लेकिन आग के भयावह होने की वजह से लोग चाह कर भी फंसे लोगों की मदद नहीं कर पा रहे थे। हालांकि, आसपास के कारखानों में काम करने वाले मजदूर बाहर निकल गए थे और आग पर काबू पाने के लिए कोशिश में जुटे थे, लेकिन यह कोशिश नाकाफी साबित हो रही थी। आखिरकार दमकल ने कड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया।

मालिक ने नहीं ली थी एनओसी
जिस कारखाने में आग लगी उसके मालिक ने दिल्ली दमकल से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) भी नहीं लिया था। इससे पुख्ता होता है कि गोदाम के अंदर प्रारंभिक स्तर पर आग से निपटने के पर्याप्त उपकरण नहीं थे। वहीं, घटना के बाद गोदाम का मालिक फरार बताया जा रहा है। फिलहाल, पुलिस उसकी तलाश में छापेमारी कर रही है। बताया यह भी जा रहा है कि गोदाम मालिक के पास प्लास्टिक का सामान बनाने का लाइसेंस था, लेकिन इसमें पटाखा बनाने का काम चल रहा है। हालांकि, इस संबंध में प्रारंभिक स्तर पर पुलिस अधिकारी चुप्प
ी साधे हुए हैं।

आने-जाने का एक ही रास्ता
हैरानी की बात यह है कि गोदाम में आने-जाने के लिए केवल एक ही रास्ता था। इस वजह से आग लगने के बाद कर्मचारी गोदाम से समय रहते नहीं निकल सके। गोदाम के अंदर महिलाओं की लाश एक दूसरे के ऊपर पड़ी हुई मिली। कई महिलाओं के शव गोदाम में उसी स्थान पर पड़ी हुई मिली, जहां पर वह बैठ कर काम कर रही थीं। माना जा रहा है कि यदि दो रास्ते रहे होते तो शायद कुछ लोगों की जान बच गई होती।

आग बुझाने के लिए रेत तक नहीं थी
इस औद्योगिक क्षेत्र के जिस संबंधित विभाग के अधिकारी के कंधों पर जांच-पड़ताल की जिम्मेदारी थी वे अधिकारी मामले से पूरी तरह से बेखबर थे। प्लास्टिक की फैक्टरी में पटाखा का गोदाम कैसे संचालित हो रहा था इस पर सवाल उठ रहे थे। फैक्टरी के अंदर बाल्टियों में रेत भी नहीं रखी गई थी जो आग से सुरक्षा की बुनियादी चीज है।

नहीं बचे पहचान के दस्तावेज
आग की चपेट में आने से मजदूर बूरी तरह से झुलस गए थे। साथ ही कारखाने में रखा सारा सामान व दस्तावेज भी जल कर राख हो गए हैं। यही कारण है कि पुलिस प्रशासन मजदूरों की पहचान नहीं कर पा रही थी। पुलिस मजदूरों के जानकारों से पूछताछ कर देर रात तक यह पता लगाने की कोशिश में जुटी थी कि कारखाने में कितने मजदूर काम करते हैं और कहां रहते थे। बताया जा रहा है कि अधिकतर मजूदर आसपास के इलाकों में रहते थे।

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