‘आप’ को पहले से ही था फैसले का अंदेशा, आयोग ने 20 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की
संसदीय सचिव बनाए गए 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के चुनाव आयोग के फैसले का अंदेशा दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को पहले से ही था, इसीलिए उसने विधानसभा को भी जमकर अपनी राजनीति का अखाड़ा बनाया। चुनाव आयोग ने ढाई साल की सुनवाई के बाद शुक्रवार को आप के 20 विधायकों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी। इसको लेकर दिल्ली की राजनीति गरमा गई है। केजरीवाल सरकार का जब मन होता है, वह नियमों को दरकिनार कर विधानसभा की बैठक बुला लेती है। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में विपक्ष यानी भाजपा के केवल चार सदस्य हैं, जिन्हें सदन में बोलने तक नहीं दिया जाता है। नियमानुसार बैठक न बुलाने के कारण विधानसभा का कोई तय एजंडा होता ही नहीं है। सदन में न तो प्रश्नकाल होता है जिसमें सरकार को जनता के सवालों का जवाब देना होता है, न ही शून्यकाल होता है और न ही विपक्ष को कोई मुद्दा उठाने दिया जाता है। इतना ही नहीं, विधानसभा का एजंडा तय करने में विपक्ष की कोई भूमिका भी नहीं होती। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आमतौर पर सदन में नहीं आते। पिछले दिनों हुए तीन दिवसीय सत्र में भी वे एक दिन भी नहीं आए। विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने बताया कि विधानसभा की बैठक में विपक्ष की भागीदारी तो दूर, विपक्ष के सदस्यों को आसानी से बोलने तक नहीं दिया जाता है।
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और इसका शासन राष्ट्रपति के माध्यम से उपराज्यपाल चलाते हैं। विधानसभा का सत्र भी उपराज्यपाल की अनुमति से ही बुलाया जाता है, लेकिन राजनिवास से अनबन के कारण आप सरकार ने दो साल में सत्रावसान कराया ही नहीं, बल्कि पहले सत्र को ही चलता हुआ मान कर बिना उपराज्यपाल को सूचना दिए विधानसभा अध्यक्ष से कह कर बैठक बुला ली। दो बार तो सरकार उपराज्यपाल के खिलाफ ही विशेष बैठक बुला चुकी है। दिल्ली विधानसभा के सचिव रहे एसके शर्मा कहते हैं कि दिल्ली का शासन तो राष्ट्रपति के नाम पर उपराज्यपाल चलाते हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि उपराज्यपाल की आलोचना करने के लिए विधानसभा बुलाई जाए। उन्होंने कहा कि पौने तीन साल में आप सरकार ने आठ विशेष बैठकें बुलार्इं, लेकिन एक बार भी उपराज्यपाल से इजाजत नहीं ली। संसदीय सचिव के मुद्दे पर भी सरकार खुद की वजह से ही फंसी।
यह कैसे संभव है कि सरकार निर्देश दे और विधानसभा अध्यक्ष विधानसभा परिसर में संसदीय सचिवों के लिए कमरे तैयार करवाएं। इतना ही नहीं, जब केजरीवाल सरकार की मनमानी पर रोक लगाने की कोशिश हुई तो उसने विधानसभा कमेटियों के जरिए अधिकारियों को आदेश दे दिए। अधिकारियों ने परेशान होकर उपराज्यपाल से गुहार लगाई। उपराज्यपाल ने कमेटियों के अधिकारों की व्याख्या करवाई और इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखा। फरवरी 2015 में दिल्ली में आप की सरकार बनी और अगले ही महीने उसने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। 19 जून को युवा वकील प्रशांत पटेल ने इसके खिलाफ राष्ट्रपति को याचिका दी और 24 जून को बिना केंद्र सरकार की अनुमति के दिल्ली मंत्रिमंडल ने इसे पिछली तारीख से लागू करने के लिए कानून में संशोधन करने का फैसला किया। इसके बाद ही यह तय हो गया था कि यह मुद्दा आगे भी जारी रहने वाला है। इसलिए आप सरकार शुरू से ही चुनावी मोड में रही है और आज भी उसी मोड में है। हालांकि इस बार जल्दी ही तय हो जाएगा कि दिल्ली में मध्यावधि चुनाव होंगे या फिर आप सरकार इसी तरह केंद्र से लड़ती रहेगी।