चुनाव आयोग ने दिल्ली जैसा एक्शन लिया तो नहीं बचेगी छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार

चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को ‘लाभ का पद’ रखने के मामले में अयोग्‍य घोषित कर दिया है। वे सभी संसदीय सचिव के पद पर थे। ऐसा ही मामला छत्‍तीसगढ़ में भी है, जहां 11 भाजपा विधायक संसदीय सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से छत्‍तीसगढ़ के संसदीय सचिवों पर भी वही नियम लागू करते हुए उन्‍हें अयोग्‍य घोषित किए जाने की मांग की है। अगर ऐसा होता है रमन सिंह की सरकार पर खतरे के बादल मंडराने लगेंगे। 90 सदस्‍यीय विधानसभा में बीजेपी के 49 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के 39 और एक निर्दलीय तथा एक बसपा विधायक है। अगर 11 विधायकों को अयोग्‍य घोषित किया जाता है तो सदन में 79 सदस्‍य रह जाएंगे और बहुमत का आंकड़ा 40 हो जाएगा। ऐसे में भाजपा को इकलौते निर्दलीय और एक बसपा विधायक की मदद की जरूरत होगी। अगर उनका समर्थन भाजपा को नहीं मिलता तो बीजेपी हाथ से छत्‍तीसगढ़ फिसल सकता है।

छत्‍तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिवों को अयोग्‍य घोषित करने की मांग कांग्रेस नेता मोहम्‍मद अकबर ने राज्‍यपाल से की। इसके बाद उन्‍होंने चुनाव आयोग को पत्र लिखा और बिलासपुर उच्‍च न्‍यायालय में याचिका डाली। अदालत में सुनवाई का अंतिम दौर चल रहा है। छत्‍तीसगढ़ के जिन 11 विधायकों पर तलवार लटक रही है, उनके नाम हैं- लाभचंद बाफना, मोतीराम चंद्रवंशी, शिवशंकर पैकारा, अम्‍बेश जंगड़े, लक्‍खन लाल देवांगन, टोखन लाल साहू, सुनिति रथिया, चंपा देवी पावले, राजू खटरिया, गोवर्द्धन सिंह मांझी और रूपकुमारी चौधरी।

राज्‍य में संसदीय सचिवों को मंत्रियों के समान कई सहूलियतें दी गई हैं, जैसे- बंगले, गाड़‍ियां और स्‍टाफ। नेता विपक्ष टीएस सिंहदेव ने इंडिया टुडे से कहा, ”चुनाव आयोग को पूरे देश में एक प्रकार के नियम का पालन करना चाहिए। अगर उन्‍होंने दिल्‍ली में आप (AAP) विधायकों को अयोग्‍य करार दिया है, तो छत्‍तीसगढ़ के विधायकों को पद पर बने रहने क्‍यों दिया जा रहा है?”

दूसरी तरफ, दिल्‍ली में AAP नेता संजय सिंह ने कहा, “2006 में, शीला दीक्षित की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने अपने 19 विधायकों को लाभ का पद दिया था। हरियाणा में चार संसदीय सचिव हैं, पंजाब में भी ऐसा पद है, हिमाचल प्रदेश में इस तरह के 11 पद हैं और झारखंड व छत्तीसगढ़ में भी ऐसी स्थिति है। उन्होंने विशेष तौर पर इस मामले में दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में सभी नियुक्तियों को रद्द कर दिया था, लेकिन किसी भी विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं की थी।”

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