डोकलाम अविराम
एक बार फिर डोकलाम में चीन वही कर रहा है जो पिछले साल जून में उसने किया था। फर्क यह है कि तब भारत सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया थी, जबकि इस बार टालमटोल या चुप रह जाने की है। बीते साल जून में भारतीय सैनिकों ने डोकलाम में चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया था। उस समय और बाद के बयानों से भी यह जाहिर हुआ कि इस कार्रवाई के पीछे भारत सरकार की हरी झंडी थी। चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिए जाने के पीछे भारत के दो तर्क थे। एक तो यह कि डोकलाम विवादित क्षेत्र है। अगर इस पर चीन का दावा है, तो भूटान का भी है। और कूटनीतिक तथा रक्षा संबंधी मामलों में भूटान भारत पर निर्भर है, इसलिए भूटान की तरफ से बोलने का भारत को हक है। एक विवादित क्षेत्र में कोई पक्ष स्थायी प्रकृति का निर्माण कैसे कर सकता है? दूसरा तर्क भारत के अपने सामरिक हितों से संबंधित था। अगर चीन ने डोकलाम में सड़क बना ली, तो उस पतली जमीनी पट्टी तक पहुंचना उसके लिए आसान हो जाएगा, जो भारत के पूर्वोत्तर को जोड़ती है। यही कारण था कि चीन के खूब आंख तरेरने के बावजूद भारत अपने पक्ष पर डटा रहा। डोकलाम में दोनों तरफ के सैनिक किसी भी क्षण कुछ भी हो सकता है के अंदाज में एक दूसरे के सामने थे। यह ‘गतिरोध’ दो महीने से कुछ ज्यादा ही चला। इस बीच नियंत्रण रेखा पर खूब तनाव का माहौल रहा और दोनों देशों के बीच खूब तनातनी रही।
अगस्त में, चीन में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के कुछ दिन पहले, गतिरोध समाप्त हो गया। चीन और भारत, दोनों ने अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया, और फलस्वरूप सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिरकत का रास्ता साफ हुआ। तब पीछे हटते हुए चीन ने बस इतना कहा था कि वह डोकलाम पर अपनी संप्रभुता का दावा जताता रहेगा। लेकिन एक विवादित क्षेत्र पर दावा जताने और कब्जा जमाने में फर्क है। पिछले दिनों डोकलाम की जो तस्वीरें छपीं और प्रसारित हुई हैं वे बताती हैं कि चीन ने वहां हेलिपैड, बंकर और बेस बना लिये हैं, वह भी पिछले ‘गतिरोध’ के स्थान के एकदम करीब। विडंबना यह है कि सड़क बनाने को स्थायी निर्माण बताने वाली भारत सरकार की निगाह में अब यह सब अस्थायी प्रकृति का निर्माण है जिसे शायद नजरअंदाज किया जा सकता है! यह हैरानी की बात है कि अब भारत सरकार का रुख का पहले जैसा क्यों नहीं है?
अब कड़ा जवाब देने के बजाय कहा जा रहा है कि गलतफहमी दूर करने के कुछ उपाय किए गए हैं। यह भी साफ नहीं है कि ये उपाय कूटनीतिक हैं या जमीनी और सामरिक। पिछले साल अगस्त में ‘गतिरोध’ जिस ढंग से समाप्त हुआ, उसे भारत के रुख की जीत की तरह देखा गया था। विश्व फलक पर भारत के बढ़ते प्रभाव के रूप में भी इसकी व्याख्या की गई थी। तब एक अनुमान यह था कि चीन इस प्रकरण से सबक लेगा और आइंदा जून 2017 की पुनरावृत्ति नहीं करेगा। लेकिन एक दूसरा अनुमान भी जताया गया था, और वह यह कि डोकलाम में भारत के मजबूती से डटने का दंश चीन नहीं भूलेगा और आगे चल कर और बड़ी हिमाकत कर सकता है। वह अंदेशा सही साबित हुआ है।