दिल्लीः हादसों के ज्वालामुखी पर बैठा है बवाना औद्योगिक क्षेत्र
निर्भय कुमार पांडेय
राजधानी के बवाना औद्योगिक क्षेत्र स्थित पटाखा कारखाने में जैसा हादसा हुआ है, ऐसे अनेक हादसों की गोद में यह क्षेत्र बैठा हुआ है। जानकारों का कहना है इस प्रकार के हादसों के पीछे यदि कोई मुख्य कारण है तो वह सिर्फ कम लागत में भारी मुनाफा कमाने की मालिकों की चाहतै। वे सरकारी महकमों से साठगांठ करते हैं और इसका नतीजा यह है कि इस इलाके में सैकड़ों कारखाने बिना सरकारी इजाजत के चल रहे हैं।
कंपनी मालिक इसी चाहत में नियमों की अनदेखी कर सरकारी विभाग के अधिकारियों से साठगांठ कर कारखाना संचालित करने लगते हैं। इसका खामियाजा उन गरीब परिवार के लोगों को भुगतना पड़ता है, जो हादसे में शिकार होते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं। बवाना स्थित एफ-83 में भी सुरक्षा नियमों की अनेदखी कर मालिक मनोज जैन पटाखा कारखाना संचालित कर रहा था। उसकी गलती का खामियाजा बेकसूर महिला और पुरुष मजदूरों को भुगतनी पड़ा। इस हादसे में 17 मजदूर मौत के मुंह में समा गए।
बवाना चैंबर आॅफ इंडस्ट्रीज के चेयरमैन चंद जैन का कहना है कि बवाना औद्योगिक क्षेत्र में इस वक्त 15715 प्लॉट हैं, लेकिन ठीक उसके उलट यहां पर तकरीबन 30 हजार से अधिक फैक्टरियां या फिर कारखाने संचालित किए जा रहे हैं। वहीं, इस औद्योगिक क्षेत्र में पिछले कई सालों से कामगारों के हितों के लिए काम करने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सिद्धेश्वर शुक्ला का कहना है कि यहां पर भले ही आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि 40 हजार फैक्टरियां संचालित हो रही हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां 50 हजार से अधिक फैक्टरियां चल रही हैं। इनमें से कुछ को छोड़ दें तो अधिकतर पंजीकृत नहीं हैं। हैरानी की बात यह है कि बड़ी संख्या में ऐसी फैक्टरियां भी हैं, जिनको संचालित करने का लाइसेंस किसी पैकेजिंग इकाई के नाम पर लिया जाता है, लेकिन उसकी आड़ में काम कुछ और कराया जाता है। इन नियमों की अनदेखी की वजह से ही 20 जनवरी जैसे हादसे होते हैं।