आखिर कबूल

भारत या किसी दूसरे देश ने जब भी पाकिस्तान पर आतंकी समूहों को पनाह देने के आरोप लगाए और यहां तक कि सबूत भी पेश किए तो उसने हर बार इन बातों को खारिज किया। लेकिन अब पहली बार खुद पाकिस्तान ने स्वीकार किया है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन उसकी जमीन से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। बुधवार को पाकिस्तान के विदेशमंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान साफतौर पर कहा कि अगर पाक को शर्मिंदगी से बचना है तो इन संगठनों पर बंदिशें लगाना बहुत जरूरी है। जाहिर है, पाकिस्तान का यह रुख उसकी अब तक की उस जिद के उलट है, जिसमें उसने सबूत दिए जाने के बावजूद कभी आतंकी गतिविधियों को पनाह या शह देने की बात स्वीकार नहीं की। आसिफ की यह स्वीकारोक्ति दरअसल ताजा ब्रिक्स सम्मेलन की एक उपलब्धि मानी जा सकती है।

गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले ब्रिक्स के साझा घोषणापत्र में विश्व के आतंकी संगठनों की सूची में पाकिस्तान के ठिकानों से काम करने वाले जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को भी रखा गया था। हालांकि चीन ने पहले यह कहा था कि ब्रिक्स में आतंकवाद और पाकिस्तान से जुड़े मुद्दे नहीं उठाए जाएंगे। लेकिन भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर जो पहलकदमी की, उसी का नतीजा रहा कि ब्रिक्स के बाकी देशों के साथ चीन को भी उस साझा घोषणापत्र पर रजामंद होना पड़ा। विचित्र यह है कि पाकिस्तानी विदेशमंत्री ने एक ओर आतंकी संगठनों के बारे में एक हकीकत कबूल की है और ब्रिक्स घोषणापत्र में जैश और लश्कर के साथ तहरीक-ए-तालिबान का नाम शामिल किए जाने को लेकर चीन की तारीफ की, लेकिन दूसरी ओर उसे चीन का आधिकारिक रुख मानने से इनकार भी किया। इस विरोधाभास को कैसे देखा जाए? क्या पाकिस्तान अब भी इस उम्मीद में है कि ब्रिक्स के साझा घोषणापत्र में सहमति जताने के बावजूद चीन इस मसले पर उसका समर्थन कर देगा? यह सही है कि चीन और पाकिस्तान के बीच जैसे संबंध रहे हैं, उसमें इस बात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

लेकिन ब्रिक्स में अकेले चीन प्रभावी हैसियत में नहीं है और घोषणापत्र का हिस्सा बनने के बाद उसके लिए उससे उलट कुछ करना या कहना आसान नहीं होगा।
यों कुछ वैसे आतंकी संगठनों के अपनी जमीन से संचालित होने को लेकर पाकिस्तान आंख मूंदे रखता है, जो दूसरे देशों और खासतौर पर भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं। लेकिन खुद पाकिस्तान भी इस आतंकवाद का दंश झेल रहा है। जिस तहरीक-ए-तालिबान का नाम ब्रिक्स साझा घोषणापत्र में लिया गया, वह पाकिस्तान में कई बड़े आतंकी हमले कर चुका है। लेकिन यह समझना मुश्किल है कि खुद इतने व्यापक पैमाने पर नुकसान उठाने के बावजूद पाकिस्तान आखिर क्यों आतंकियों को शह देता रहा है। बहरहाल, ख्वाजा आसिफ का यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि लश्कर और जैश जैसे संगठनों की हरकतों पर हमें बंदिशें लगानी होंगी, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखा सकें कि हम अपने घर को ठीक करने का माद््दा रखते हैं। अगर अब तक की जिद को पीछे छोड़ कर पाकिस्तान आगे बढ़ता है और अपनी जमीन पर आतंकी संगठनों पर नकेल कसता है तो इससे भारत और अफगानिस्तान राहत की सांस लेंगे ही, खुद पाकिस्तान के अमन-चैन के लिए भी इससे अच्छी बात और कुछ नहीं हो सकती।

 

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