India Republic Day 2018: 26 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है गणतंत्र दिवस, पढ़ें इस दिन की रोचक कहानी
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, लेकिन इसी तारीख को ही भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य क्यों बना? इतिहास के पन्नों को खंगालें तो पता चलता है कि भारतीय नेता किसी ऐसे दिन संविधान लागू करना चाहते थे जो राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक रहा हो। इसका मतलब साफ था कि भारत के लिए 26 जनवरी की तारीख का ऐतिहासिक महत्व था। दरअसल, स्वतंत्रता सेनानियों ने तीस के दशक में ही देश को आजाद कराने की तारीख तय कर ली थी। कांग्रेस ने देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए 26 जनवरी 1930 की तरीख तय की थी। 31 दिसंबर 1931 को लाहौर में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराते हुए पूर्ण स्वराज की मांग कर दी थी। जब संविधान लागू करने की घड़ी आई तो पूर्ण स्वराज की मुहिम की नींव रखने वाले दिन की तारीख को ही इसके लिए चुना गया। 26 जनवरी 1950 को जब संविधान लागू हुआ तो गणतंत्र दिवस के साथ ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ भी मनाया गया।
भारत का संविधान बनाने में नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। संविधान हाथ से लिखा गया था और इसे तैयार करने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा था। भारत की संविधान दुनिया का सबसे बड़ा हस्त लिखित संविधान कहा जाता है। डॉक्टर भीमराव अंबेडर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। सविधान के लिए पहली बार 9 दिसंबर 1946 को संसद के सभागार में संविधान सभा दस्तावेजों को लेकर इकट्ठा हुई थी। संसद के पहले सत्र में शुरू हुई बहस में 292 सदस्यों में से 207 सदस्यों ने हिस्सा लिया था, जो कि तीन महीने तक चली थी। संविधान सभा के सदस्यों के प्रांतीय विधानसभा चुनाव कराकर चुना गया था। इसके लिए अंग्रेजों ने 1946 में एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा था। चुने हुए सदस्यों में सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू और पंडित जवाहर लाल नेहरू भी शामिल थे।
3 वर्षों में संविधान सभा के 165 दिनों में 11 सत्र हुए। 9 दिसंबर 1949 को संविधान का ड्राफ्ट संविधान सभा ने अपना लिया और करीब एक मीहने के बाद 26 जनवरी 1950 को पूर्ण स्वराज की मुहिम शुरू करने वाले दिन इसे लागू कर दिया गया। दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की पहली परेड 1955 में हुई थी। हाथ से लिखा गया भारतीय संविधान संसद के पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित है।