समय रहते

समय रहते
हरियाणा के हिसार में माध्यमिक विद्यालय के बारहवीं के छात्र द्वारा प्राचार्या पर दागी गई गोलियों को एक बिगड़ैल छात्र की करतूत मान कर हलके में लेने की आवश्यकता नहीं, बल्कि इसे समाज में गहराते हिंसा बोध की क्रूर अभिव्यक्तिमानकर सरकार को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। नैतिकता और अनुशासन के नियमों को धता बता, हर छोटी-बड़ी घटना पर आए दिन हिंसा करने पर उतारू कुछ लोग सरकारी संपत्ति को जलाने, तोड़फोड़ करने को अपना हक समझते हैं, जिसका बच्चों के अवचेतन मन पर गहरा असर पर होता है। इससे बच्चों की सहनशक्ति पर नकारात्मक असर होता है और उसका ह्रास होना भविष्य के और भयावह होने का संकेत है। फिर विद्यालयों की भूमिका को देखा जाए तो विद्यालयी शिक्षा अनुशासन की आधारशिला मानी जाती है, जहां बच्चे वैयक्तिक ही नहीं सामाजिक उत्तरदायित्व के पाठ सीखते हैं। लेकिन पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली की विसंगतियों से अभी तक बची स्कूली शिक्षा, अब मानो उसकी गिरफ्त में आ रही है, वरना ऐसी घटनाएं विदेशी संस्थानों में ही सुनने में आती रही हैं।

एक और महत्त्वपूर्ण बात इस संदर्भ में विचारणीय है कि केवल हिसार क्यों, गुरुग्राम का प्रद्युम्न हत्याकांड, लखनऊ में पहली कक्षा के छात्र पर चाकू से हमला और प्रकाश में न आने वाली अनेक घटनाओं ने स्कूली शिक्षा में दंड विधान के निर्मूलन पर बहस छेड़ दी है। एक ओर पाश्चात्य शिक्षा संस्थान इस पर पुनर्मंथन कर रहे हैं और हलके-फुलके दंड के बाबत विचार कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय शिक्षा में अध्यापकों के शब्दों, भंगिमाओं पर भी नियमन किया गया है। जब बच्चे को पता है कि शिक्षक और विद्यालय उसे अधिक से अधिक सजा के तौर पर महज निष्कासित कर सकते हैं तो वह अपराध करने में नहीं हिचकता।
रही बात अभिभावकों की, तो वे अपनी जिम्मेदारी स्कूल पर डाल कर स्वयं को इस परिस्थिति से मुक्त नहीं रख सकते। बच्चा पिस्तौल या चाकू घर से ही लाता है। उसे समझना और सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करना केवल शिक्षक की जिम्मेदारी नहीं है। इसमें परिवार का दायित्व कहीं बड़ा है और इस दौर में बढ़ा भी है। समय रहते सचेष्ट हो जाना चाहिए क्योंकि बच्चे राष्ट्र की अनमोल संपत्ति हैं जिनके बिगड़ जाने पर नुकसान सभी का होगा।
’चंद्रमौलि त्रिपाठी, केंद्रीय विद्यालय, इलाहाबाद

कितना बदलाव

अकसर कहा जाता है कि बदलाव ही संसार का नियम है चाहे वह बदलाव आर्थिक, राजनीतिक या सामाजिक हो। बदलाव समय के साथ आता रहता है। इस कसौटी पर देखें तो क्या बिहार इन दिनों बदलाव के रथ पर सवार है? हम कह सकते हैं कि बिहार अभी बदलाव से गुजर रहा है। चाहे शराबबंदी हो या बाल विवाह और दहेज जैसी कुरीतियां, इनके बाबत प्रदेश के लोगों में हाल के दिनों में निश्चित ही जागरूकता आई है। प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक और सामाजिक आंदोलन की शुरुआत गांधी जयंती के अवसर पर बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ अपना अभियान छेड़ कर की थी। बापू के जन्मदिन पर नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि है। इन दोनों कुरीतियों से समाज जकड़ा हुआ है। बाल विवाह और दहेज प्रथा एक-दूसरे से जुड़ी हैं। कभी-कभी तो दहेज प्रथा के चलते भी बाल विवाह होते हैं।

प्रदेश में बाल विवाह पीछे गरीबी, लड़कियों का शिक्षित नहीं होना, उन्हें बोझ समझा जाना, समाज में प्रचलित मान्यताएं आदि कारण हैं। दहेज ने अब पहले से भी भयावह रूप धारण कर लिया है। आये दिन समाचार पत्रों में देखने को मिल जाता है कि अमुक जगह दहेज के कारण लड़की को जला दिया या घर से निकाल दिया। इस तरह की कुरीतियों को रोकने के लिए कानून के साथ-साथ आम जनता की भागीदारी बहुत जरूरी है। जब तक प्रदेश के लोग बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूक नहीं होगे तब तक इन्हें खत्म करना बहुत मुश्किल है।
’राकेश कुमार राकेश, पटना विश्वविद्यालय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *