गुरु रविदास जयंती 2018: धर्म और भाईचारे का दिया था संदेश, जानें कौन थे संत रविदास

हिंदू पंचांग के अनुसार ये माघ माह की पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है। गुरु रविदास के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में रविदास जयंती मनाई जाती है। वर्ष 2018 में रविदास जी की 641 वीं जयंती मनाई जा रही है। इस दिन श्रद्धालु नगर कीर्तन निकालते हैं और प्रातः काल में पवित्र नदियों और स्रोतों में स्नान करते हैं। मंदिरों और गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थना की जाती है। वाराणसी के गोवर्धनपुर में श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर में इस दिन को पर्व के रुप में मनाया जाता है। लाखों श्रद्धालु आकर रविदास जयंती के पर्व में शामिल होते हैं और अपने गुरु की प्रार्थना करते हैं और उनके दोहों का उच्चारण करते हैं।

रविदास का जन्म 14 वीं शताब्दी में वाराणसी के एक चर्मकार परिवार में हुआ था। रविदास जी ने पहले बौद्ध, सिख और हिंदू धर्म को अपनाया था। निर्गुण सम्प्रदाय के इन्हें प्रसिद्ध संत माना जाता था। रविदास जी ने भक्ति आंदोलन का उत्तर भारत में नेतृत्व किया था। रविदास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने अनुयायियों, समाज और देश के कई लोगों को धार्मिक और सामाजिक संदेश दिया था। रविदास जी जिस समाज से आते थे उसे नीच माना जाता था और भेदभाव था, लेकिन उन्होनें इसे कम करने के अनेकों प्रयास किए। मुख कहावते हैं कि भगवान ने धर्म की रक्षा करने के लिए रविदास को धरती पर भेजा था।

गुरु रविदास ने भाईचारे, शांति की सीख सभी को दी थी। रविदास जी ने कभी किसी से दान-दक्षिणा नहीं ली थी। वो अपनी आजीविका चलाने के लिए जूते बनाने का काम करते थे। उनके विचारों से ही भक्ति आंदोलन को हवा मिली थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि रविदास जी का जन्म 1450 ई. में और मृत्यु 1520 ई. में हुई थी। वाराणसी में रविदास जी की याद में कई स्मारक बनाए गए है और जयंती के दिन यहां पर रविदास जी के दोहे गूंजते हैं, रविदास ने हमेशा भाईचारे और सहिष्णुता की सीख दी थी।

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