कलम के विरुद्ध

पत्रकार लोगों को खबरें देते-देते कब खुद खबर बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता है। बंगलुरु में पांच सितंबर को वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या की गई। उन्होंने अपनी कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका में पिछले तीन महीनों में केंद्र सरकार और उसके नेताओं की आलोचना में कम से कम आठ लेख प्रकाशित किए थे। लंकेश ने अपने आखिरी साप्ताहिक स्तंभ में गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बच्चों की मौत और डॉक्टर कफील खान को हटाए जाने के खिलाफ लिखा था। इससे पहले एमएम कलबुर्गी और पानसरे की भी हमलावरों ने हत्या की थी। बिहार के सीवान में पत्रकार राजदेव रंजन भी माफिया डॉन से राजनीतिक बने शहाबुद्दीन की कारगुजारियों की पड़ताल कर रहे थे कि कुछ समय बाद उनकी हत्या कर दी गई। झारखंड में पत्रकार अखिलेश प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई। ये हत्याएं बहुत पेशेवर तरीके से की गर्इं इसलिए इनका कारण कोई छोटी-मोटी रंजिश नहीं हो सकती। इन्हें योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया है यानी

इनके पीछे ऐसे ताकतवर तत्त्वों का हाथ है जिन्हें पत्रकारों के लेखन से परेशानी होती है। आज सरकार की आलोचना करने वालों को अक्सर ‘ट्रॉलिंग’ का शिकार होना पड़ रहा है। महिला पत्रकारों को बलात्कार और एसिड अटैक की धमकी दी जाती है। इस तरह से पत्रकारों को चुप कराया जाना भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक लक्षण है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला करने वाले हत्यारों और हत्या की साजिश रचने वालों को फांसी के फंदे तक लाने के लिए समाज को आगे आना चाहिए। ईमानदार पत्रकारिता इस बदले समय में काफी चुनौतीपूर्ण लग रही है। यह कड़वा सच है कि पत्रकारों में एक वर्ग अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए खबरों और अपने रसूख का इस्तेमाल करता है और जनता को गुमराह करता है। क्या पत्रकारों की सुरक्षा और उनके अपने अधिकार की आवाज सुनी जाएगी? क्या महिला पत्रकारों को निर्भीक होकर अपना काम करने दिया जाएगा? अपहरण, हत्या, हिंसा का जोखिम लेकर दुनिया भर के पत्रकार तो खबरें हमारे बीच लाते हैं लेकिन उनकी खबर कौन लेगा? बुजदिल हत्यारों को पता नहीं कि वे इंसान को मार सकते हैं लेकिन किसी के विचारों को मारना उनके वश की बात नहीं है।

पत्रकारों और पत्रकारिता में रुचि रखने वालों के लिए ब्लॉग, वेबसाइट, वेब पोर्टल, मोबाइल न्यूज, एफएम, अखबार आदि लोग खुद चला रहे हैं और उनका समाज पर अच्छा असर भी हो रहा है। लेकिन ईमानदार पत्रकारिता घूसखोरों, हत्यारों और राजनेताओं को पसंद नहीं आती इस वजह से बहुत सारे पत्रकार मारे जा रहे हैं। मोबाइल ने ‘सिटीजन जर्नलिज्म’ को बढ़ावा दिया है और आज मोबाइल रिकॉर्डिंग और घटना स्थल का फोटो, खबरों की दुनिया में महत्त्वपूर्ण दस्तावेज की तरह उपयोग में आ रहे हैं। दुनिया के स्तर पर सबके अधिकारों की बात करने वाले पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। ‘जर्नलिस्ट्स विदाउट बॉर्डर’ की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में मारे जाने वाले पत्रकारों की संख्या 700 से ऊपर बताई जाती है। कभी ‘स्ट्रिंगर’ तो कभी छोटे समूह के लिए काम करने वाले पत्रकारों की मौत के बाद उनके परिवार की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन जाती है। पत्रकार की नौकरी जहां असुरक्षा की भावना से घिरी रहती है वहीं पूरी दुनिया के स्तर पर राजनीतिक और संवेदनशील मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। गौरी लंकेश को न्याय में दिलाने के लिए समाज के हर तबके को आवाज उठानी होगी।

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