पोस्टर बॉयज- सामाजिक संदेश के साथ हंसने और ठहाके मारने के लिए भरपूर अवसर
दर्शक के मन में पहला सवाल तो यही उठेगा कि अब तक जिस शख्स के ढाई किलो के हाथ और उसकी ताकत का किस्सा सुनते आए थे, वह हंसाने में कितना कामयाब होगा? क्या उसकी कॉमेडी ढाई किलो की होगी? बात सनी देओल की चल रही है जिन्होंने इस कॉमेडी फिल्म में एक अहम किरदार निभाया है। वैसे, उसी छवि को ध्यान में रखकर उनको सेना के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी का किरदार दिया गया है। यहां यह भी जोड़ना होगा कि सनी ने अपने भाई बॉबी देओल और श्रेयस तलपड़े (जो इस फिल्म के निर्देशक भी हैं और निर्माताओं में एक भी) के साथ मिलकर कॉमेडी का भरपूर मसाला इकट्ठा कर दिया है। यानी जो दर्शक हंसने के लिए सिनेमा हॉल में जाएंगे उनको निराशा नहीं होगी।
फिल्म तीन पुरुष किरदारों जगावर चौधरी (सनी देओल), विनय शर्मा (बॉबी देओल) और अर्जुन सिंह (श्रेयस तलपड़े) पर केंद्रित है, जो जंगेठी नाम के एक गांव में रहते हैं। तीनों की गांव में एक हैसियत है। लेकिन एक दिन उस हैसियत की ऐसी तैसी होने लगती है, जब वे पाते हैं कि गांव में नसबंदी के प्रचार में लगे एक पोस्टर में उनके फोटो चिपके हुए हैं। तीनों सन्न रह जाते हैं क्योंकि उन्होंने कभी नसबंदी कराई नहीं। लेकिन मामला सिर्फ यही नहीं है। होता है ये कि उनके परिवार और गांव के लोग उन पर फब्तियां कसने लगते हैं और उनका मजाक उड़ाने लगते हैं। एक तरह से तीनों पर सामाजिक कलंक लग जाता है और इसी वजह से जगावर की बहन की सगाई टूट जाती है, विनय की पत्नी छोड़कर चली जाती है और अर्जुन सिंह के होने वाले ससुर को लगता है कि ऐसे आदमी को अपनी बेटी कैसे सौंपे, जिसने मीटर का कनेक्शन ही कटवा लिया है। गांव के लोगों और रिश्तेदारों में ये बात बैठी हुई है कि जिसने नसबंदी करा ली उसकी तो मर्दानगी गई। यह बात महिलाओं के मन में भी है और उनको लगता है कि उनके पति तो अब गए काम से। अब क्या करें?
तब तीनों लग जाते हैं कि यह पता करने कि ऐसा पोस्टर निकला तो कैसे और इस सबका हल क्या है? आखिर खोई हुई इज्जत फिर से पानी है। फिल्म तीनों के इस इज्जत अभियान पर टिकी है। इसी में कैसे-कैसे झमेले होते हैं इसके लिए सरकारी दफ्तरों से लेकर नेताओं के यहां चक्कर लगाने के सिलसिले में क्या-क्या होता है, उसी पर यह फिल्म टिकी है। इसी नाम से मराठी में भी फिल्म बन चुकी है और हिंदी में यह फिल्म उसी की रीमेक है। ‘पोस्टर बॉयज’ ऐसी कॉमेडी फिल्म है, जिसमें हंसने और ठहाके मारने के लिए भरपूर अवसर है। फिल्म में एक सामाजिक संदेश भी है कि नसबंदी कोई हानिकारक चीज नहीं है और इसका मर्दानगी से कोई लेना देना नहीं है।