बजट के राजनीतिक संकेत: पहले हो सकते हैं लोकसभा चुनाव, फोकस नए मतदाता-वर्ग पर
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर दिया। बजट के सियासी संकेत पढ़े जाएं तो साफ लगता है कि सरकार चुनाव के लिए कार्यकाल खत्म होने का इंतजार करने वाली नहीं है। किसानों और गैरनौकरीपेशा आम लोगों के बारे में की गई घोषणाएं ज्यादा लुभावनी हैं। नौकरीपेशा लोगों से जुड़ी घोषणाएं वैसी नहीं हैं। स्टैंडर्ड डिडक्शन शुरू कर मेडिकल रीइंबर्समेंट और ट्रांसपोर्ट अलाउंस खत्म करने की बात से फायदा न के बराबर हुआ। सेस बढ़ने से यह न के बराबर भी पूरी तरह न में बदलने का खतरा है।
माना जा सकता है कि बजट के जरिए सरकार ने अब ग्रामीण इलाकों में पैठ बनाने की नीति बनाई है। हाल में हुए लगभग सभी महत्वपूर्ण चुनावों (गुजरात सहित) में भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों में उम्मीद के मुताबिक वोट नहीं मिले हैं। शहरी मतदाताओं का साथ उसे अच्छा मिलता रहा है। इसलिए वित्त मंत्री का जोर किसानों, गांव के गरीबों, युवाओं और एमएमएमई (सूक्ष्म, छोटे व मंझोले उद्यमियों) पर रहा है।
2014 के चुनाव से पहले और सरकार बनने के बाद पेश किए गए बजटों में भाजपा और मोदी सरकार द्वारा जो वादे किए गए थे, उनकी डिलीवरी काफी सुस्त है। काले धन पर अंकुश, युवाओं को नौकरी, शौचालय निर्माण, गरीबों के लिए घरों का निर्माण, स्मार्ट सिटी बनाने जैसेी जो भी बड़ी घोषणाएं हैं, उन पर अमल की सुस्त रफ्तार संबंधी खबरें लगातार मीडिया में आ रही हैं। लोग भी इसे महसूस कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चुने गए शहरों का हाल यह है कि डेढ़ साल में दफ्तर-अफसर तक बहाल नहीं हो सके हैं। ऐसे में इस बार नए मतदाता-वर्ग को लुभाने वाली घोषणाएं बजट में की गई हैं।