राजस्थान चुनाव से पहले पीएम मोदी को बड़ा झटका, तीनों सीटों पर उप चुनाव में भाजपा की करारी हार
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार (1 फरवरी) को साल 2018-19 का बजट पेश कर दिया है। बजट में कृषि, ग्रामीण इलाकों और गरीबों पर विशेष जोर दिया गया है। हालांकि, मध्यम वर्ग बजट प्रावधानों से खासा नाराज है। माना जा रहा है कि सरकार ग्रामीणों और गरीबों के लिए लोक लुभावन योजनाएं लाकर उनका दिल जीतना चाहती है ताकि अगले लोकसभा चुनाव में ये गरीब वोटर बीजेपी की नैया पार लगा सके। इस बात की भी संभावनाएं अब मजबूत हो गई हैं कि हो सकता है मोदी सरकार इसी साल के अंत तक लोकसभा चुनाव करवा ले मगर राजस्थान उप चुनावों ने भाजपा को करारा झटका दिया है। वहां दो लोकसभा और एक विधान सभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। अलवर संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार करण सिंह यादव ने भाजपा के जसवंत सिंह यादव को 1,56,319 वोट से हरा दिया। अजमेर संसदीय सीट पर भी कांग्रेस के रघु शर्मा ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार विवेक धाकड़ ने भाजपा के शक्ति सिंह को 12,976 मतों से हरा दिया है।
राजस्थान के अलावा पश्चिम बंगाल में हुए उप चुनावों में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। वहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने नोआपारा विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की है। उलुबेरिया लोकसभा सीट पर तृणमूल की सजदा अहमद ने भाजपा के अनुपम मलिक को हरा दिया। यह सीट सजदा के पति सुल्तान अहमद के निधन के बाद खाली हुई थी। कुछ दिनों पहले टीवी चैनलों के सर्वे में बताया गया था कि पीएम मोदी की लोकप्रियता में साल 2014 के मुकाबले बड़ी कमी आई है। अगर इसे सच मानें तो 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा का ग्राफ कई राज्यों में गिर सकता है।
इधर, राजनीतिक विश्लेषक और सैफोलिस्ट यशवंत देशमुख ने राजस्थान की 17 विधान सभा सीटों के ट्रेंड को आधार बनाकर अनुमान जताया है कि इस साल के अंत तक होने वाले विधान सभा चुनाव में सत्ताधारी भाजपा सरकार को 200 सीटों में से महज 53 सीटें ही मिलेंगी। देशमुख का अनुमान है कि कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी होगी। उसे 140 सीटें मिल सकती हैं। बता दें कि 2013 के विधान सभा चुनावों बीजेपी को 162, कांग्रेस को 21 जबकि अन्य को 17 सीटें मिली थीं। माना जाता रहा है कि सीएम वसुंधरा राजे और पीएम मोदी के बीच सियासी रिश्ते सामान्य नहीं हैं। अगर यह सच हुआ तो राजस्थान में भाजपा की वापसी पर ग्रहण लग सकता है। वैसे यहां पिछले कुछ दशकों से सियासी ट्रेंड भी रहा है कि कोई पार्टी सत्ता में वापसी नहीं करती।