सीलिंग हो या नहीं, दिल्लीवाले दें राय
कारोबारियों की ओर से सीलिंग का विरोध और उससे राहत के सरकारी प्रयासों के बीच अब गेंद दिल्लीवालों के पाले में है। इस मामले में आम दिल्लीवालों की राय भी अहम है कि वे अपनी दिल्ली कैसी चाहते हैं? नियम के खिलाफ रिहायशी इलाकों में खुली अवैध दुकानों की सीलिंग का यह अभियान सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उसकी निगरानी समिति चला रही है। केंद्र सरकार ने डीडीए के जरिए राहत की जो पहल की है उससे सीलिंग रुकने की उम्मीद तो है, लेकिन यह तभी संभव है जब डीडीए का प्रस्ताव पारित हो। सीलिंग रोकने के सरकारी प्रयास में राहत के कई प्रस्तावों को शामिल किया गया है और उन प्रस्तावों पर दिल्लीवालों से राय मांगी गई है।
डीडीए की ओर से दिए गए इन प्रस्तावों पर संबंधित लोगों से तीन दिन के भीतर आपत्ति और सुझाव देने को कहा गया है। इस बारे में राय देते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पूर्व योजना आयुक्त आरजी गुप्ता ने कहा कि इस मामले में विदेशों से सीखिए। वे नागरिक जनहित में काफी जागरूक होते हैं। भारत में अमूमन हर नीति निर्माण में सरकारें राय मांगती हैं, लेकिन आम जनता का इससे कोई सरोकार नहीं होता। इस मसले पर उन्होंने दिल्लीवालों से बेबाकी से राय भेजने की अपील की। गुप्ता ने कहा कि जनता की राय को मानने की कानूनी बाध्यता भले न हो, लेकिन यह निर्णय लेने वालों को निरंकुश बनाने से रोकती है। इसकी ताकत सिर्फ वे ही जानते हैं जो नीति निर्माण की बैठकों में शामिल होते हैं।
सिविल मामलों के जानकार और हाई कोर्ट के वकील राजेंद्र प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि जनता की राय लोकतंत्र में दबाव समूह का काम करती है। सात फरवरी को जब दोबारा डीडीए की बैठक होगी, तो प्रस्तावों को मंजूरी देने से पहले दिल्लीवालों की राय पर ही चर्चा होगी। अगर यह महत्त्वपूर्ण नहीं होता तो डीडीए अपने प्रस्ताव को पास करने के लिए सात फरवरी तक का इंतजार क्यों करता। त्रिपाठी ने कहा कि सूचना के अधिकार कानून के दौर में तो यह और भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कुछ भी छुपाना सरकारों के लिए संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता का अपने अधिकारों को लेकर उदासीन होना चिंता का विषय है।
युवा चेतना के राष्ट्रीय संयोजक रोहित कुमार सिंह ने दिल्ली के युवाओं और खासकर छात्रों से दिल्ली के लिए खड़े होने की अपील की। उन्होंने कहा कि हम दिल्ली को पेरिस बनाने की बात करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को रोकने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ खड़े नहीं होते। उन्होंने अपील की कि छात्र व युवा डीडीए की वेबसाइट पर जाएं, अपनी राय दर्ज कराएं और बताएं कि सीलिंग हो या न हो।