आर्थिक विशेषज्ञ ने कहा- ‘नोटबंदी एक आपदा थी, सरकार को नहीं पता था कि बाजार कैसे काम करता है’

नोटबंदी एक आपदा थी, जो उद्देश्यों को हासिल नहीं कर पाई। आर्थिक और वित्तीय प्रकाशन ‘द ग्लूम, बूम एंड डूम रिपोर्ट’ के संपादक और प्रकाशक मार्क फैबर ने शुक्रवार को यह बात कही। फैबर ने बीटीवीआई से एक साक्षात्कार में कहा, “हम सभी जानते हैं कि नोटबंदी एक आपदा थी, इसके लक्ष्य को हासिल नहीं किया गया। इसे सौम्य तरीके से किया जा सकता था, जिसमें छह महीने का समय दिया जा सकता था। इस दौरान पुराने नोटों का आदान-प्रदान किया जा सकता था, ताकि किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचे।” उन्होंने कहा कि यह कदम शिक्षाविदों की सलाह पर आधारित था, जिसमें सरकार के लोगों को यह पता नहीं था कि बाजार कैसे काम करता है।

फैबर ने कहा कि नोटबंदी का उद्देश्य संगठित अपराध को काबू में करना था, जो कि नकदी की प्रचुरता से बढ़ता है, लेकिन इन दिनों उनके पास पैसे उधार देने के अन्य साधन भी हैं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में उन्होंने कहा कि नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के तहत दरें काफी अधिक रखी गई हैं, जिससे कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। नोटबंदी और जीएसटी से देश की विकास दर प्रभावित हुई है और अप्रैल-जून तिमाही के दौरान यह गिरकर 5.7 फीसदी पर आ गई। संपादक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अच्छे विचार और इरादे थे और अगर यह अगले 10-20 वर्षों के लिए पांच प्रतिशत की दर से बढ़ सकता है तो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा।

उन्होंने कहा, “मेरे लिए, यदि भारत अगले 10-20 वर्षों तक पांच प्रतिशत की दर से विकास कर सकता है, तो यह एक बढ़िया विकास दर है। लेकिन ज्यादातर भारतीयों का मानना है कि उनके देश को 8-10 फीसदी के रफ्तार से बढ़ना चाहिए। इसे भूल जाइए, क्योंकि उच्च कर्ज में डूबी दुनिया के लिए पांच प्रतिशत भी अच्छी विकास दर है। भारत भी कर्ज में डूबा है, इसलिए पांच फीसदी की विकास दर भी बढ़िया है।” फैबर ने कहा कि सभी उभरते बाजारों की अर्थव्यवस्था अमेरिका से अच्छा प्रदर्शन किया है और यह प्रवृत्ति जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि निवेशकों में भारत के बारे में आशावाद रहा है और वे एशियाई देशों में निवेश करने की उम्मीद करते हैं।

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