18 की उम्र से नीचे भी कौशल प्रशिक्षण मिले
रुबी कुमारी
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने किशोरवय (15-18 वर्ष) के लड़के और लड़कियों के कौशल प्रशिक्षण की अनुशंसा की है। इस हफ्ते जारी एक रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय को कौशल प्रशिक्षण के अलग-अलग कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए उम्र सीमा को 18 से घटा कर 14 करना चाहिए ताकि 15 से 18 साल के बच्चों का विकास स्कूली शिक्षा के अभाव में बाधित न हो। एनसीपीसीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 15-18 साल के उम्र समूह में 39.4 फीसद लड़कियां शैक्षणिक संस्थानों से बाहर हैं जबकि इसी उम्र सीमा में लड़कों की संख्या 35 फीसद है। वहीं 15-18 उम्र की स्कूली शिक्षा से बाहर की लड़कियों की कुल संख्या का 64.8 फीसद किसी तरह के काम में शामिल नहीं है। वे या तो घरेलू गतिविधियों में संलग्न हैं या दूसरों पर निर्भर हैं या फिर भीख मांगने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी तरफ 33.4 फीसद स्कूली शिक्षा से बाहर लड़के किसी तरह के काम में शामिल नहीं हैं। इन आंकड़ों के विपरीत फिक्की और अर्न्स्ट एवं यंग (2013) के अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर में 2020 तक 47 मिलियन कौशलयुक्त कामगारों की कमी होगी।
आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा, ‘मौजूदा हालात में 15 से 18 साल के बच्चों के लिए व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण के लिए कोई भी योजना देश में नहीं है। अभी सारी योजनाएं चाहे वह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना हो या अन्य सभी 18 की उम्र से ऊपर के लोगों के लिए है। ऐसे में जब योजना नहीं है तो इन बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है। वहीं केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय से बात की तो उनका कहना है वो बाजार से संचालित हैं। अब बाजार इन्हें रोजगार नहीं देता तो 15-18 उम्र समूह को कौशल प्रशिक्षण से जुड़ी योजनाओं में शामिल नहीं किया जा सकता।
दूसरी तरफ देश का बालश्रम कानून कहता है कि 15-18 की उम्र में बच्चे गैर-खतरनाक क्षेत्र (नॉन हजार्ड्स सेक्टर) में काम कर सकते हैं, इसलिए कई जगहों पर इस उम्रसमूह के बच्चे काम कर रहे हैं, लेकिन वे कौशलयुक्त नहीं हैं। ऐसे में बिना प्रशिक्षण के बाजार में भेज कर इन बच्चों के शोषण का रास्ता हम खुद खोल रहे हैं’। कानूनगो ने कहा कि चौदह साल तक को शिक्षा का अधिकार है और बीच के तीन साल वो बिल्कुल बाहर रहते हैं और 18 की उम्र में उन्हें कौशल प्रशिक्षण के लिए ढूंढ़ा जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार की योजनाओं और बच्चों से संबंधित कानून को पढ़कर रास्ता निकला गया है और यह अनुशंसा की गई है कि इन बच्चों को संस्थागत तंत्र से बाहर निकलने न दिया जाए।
एनसीपीसीआर ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय श्रम मंत्रालय से गैर-खतरनाक पेशों में बच्चों के काम करने के वातावरण के बारे में एक मानक परिचालक प्रक्रिया के माध्यम से स्पष्टता लाने की भी अनुशंसा की है। इसके साथ ही कुछ नीतिगत हस्तक्षेप की भी बात कही गई है जिसमें स्कूल से बाहर की किशोरियों के लिए जीवनकौशल शिक्षा में एक समान पाठ्यक्रम विकसित करने की भी अनुसंशा है जिसमें भाषा, नेतृत्व कौशल, आत्मविश्वास, मानवाधिकार, वित्तीय समझ जैसे कौशल शामिल हों। आयोग जल्द ही रिपोर्ट को कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय एचआरडी, महिला एवं विकास, कौशल, श्रम एवं अन्य संबंधित मंत्रालयों को भेजेगा।