यह रिफ्यूजी है 13 अरब डॉलर की फर्म का मालिक, जानिए उधारी से अरबपति कारोबारी बनने की कहानी

पश्चिमी देशों की संपन्‍नता में विभिन्‍न देशों के शरणार्थियों की भूमिका अहम रही है। भारतीय मूल के कई शरणार्थियों ने भी सफलता के झंडे गाड़े हैं। इन्‍हीं में से एक हैं सुखपाल सिंह अहलुवालिया। उन्‍होंने मेहनत के दम पर अरबपति बनने की यात्रा तय की। उनका परिवार अच्‍छी नौकरी की तलाश में भारत से युगांडा चला गया था। उस वक्‍त वह ब्रिटेन का उपनिवेश था। सुखपाल का जन्‍म वर्ष 1959 में युगांडा में ही हुआ था। आर्मी कमांडर ईदी अमीन तख्‍ता पलट के जरिये वर्ष 1971 में सत्‍ता में आए थे। उन्‍होंने दक्षिण एशिया से आए शरणार्थियों को एक महीने के अंदर देश छोड़ने का फरमान सुनाया था। इसके बाद सुखपाल के परिवार को भी अन्‍य लोगों की तरह ब्रिटेन में शरण लेना पड़ा था। यह उनके लिए वरदान साबित हुआ। सुखपाल ने 19 वर्ष की उम्र (1978) पिता और बार्कलेज बैंक से पांच हजार पाउंड (4.5 लाख रुपये) का कर्ज लिया था।

सुखपाल ने कर्ज के पैसों से उत्‍तरी लंदन में स्थित ‘हाईवे ऑटोज’ को खरीदा था। उन्‍होंने इसका नाम बदलकर ‘यूरो कार पार्ट्स’ कर दिया था। सुखपाल बताते हैं क‍ि उन्‍हें उस वक्‍त कार पार्ट्स के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। कंपनी को सफल बनाने के लिए उन्‍होंने कड़ी मेहनत की। वह सुबह सात बजे पहुंच जाते थे और तब तक डटे रहते थे जब तक ग्राहकों को उनकी जरूरत होती थी। उनका प्रयास रंग लाया और यूरो कार पार्ट्स का लंदन के अलावा यूनाइटेड किंगडम के कई हिस्‍सों (200 लोकेशन) तक विस्‍तार हो गया। सुखपाल ने जिस कंपनी को रोजी-रोटी के लिए 10 लोगों के साथ शुरू किया था, उसमें 10,000 लोग नौकरी करने लगे। सुखपाल ने वर्ष 2011 में यूरो कार पार्ट्स को अमेरिकी ऑटो पार्ट्स कंपनी ‘एलकेक्‍यू कॉरपोरेशन’ के हाथों 255 मिलियन पाउंड (2,282 करोड़ रुपये) में बेच दिया था। इसके साथ ही वह शिकागो स्थित कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्‍टर्स के सदस्‍य भी हो गए। एलकेक्‍यू कॉरपोरेशन कंपनी का कुल मूल्‍य 13 अरब डॉलर (83,570 करोड़ रुपये) है। कंपनी बेचने के कदम का बचाव करते हुए सुखपाल ने कहा, ‘मैं इस फैसले के बाद कई और काम भी कर पाया। मैंने छह-सात कंपनियों में निवेश भी कर रखा है। मैं अब सीरियल एंटरप्रेन्‍योर हूं।’

चैरिटी में भी सक्रिय: सुखपाल ने प्रवासियों का बचाव किया है। उन्‍होंने बताया कि प्रवासी इस देश (ब्रिटेन) की रीढ़ हैं और इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। वह चैरिटी में भी सक्रिय हैं। अपने व्‍यस्‍ततम समय में से इसके लिए कुछ वक्‍त निकाल लेते हैं। सुखपाल लंदन में आश्रयहीन लोगों को सहारा देने के साथ ही भारत में सुविधा विहीन बच्‍चों को शिक्षा भी मुहैया करा रहे हैं। उनका उद्देश्‍य एक ऐसी विरासत खड़ी करना है, जिससे हर कोई प्रेरणा ले सके।

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