ट्रेनों में शौच की परेशानी से जूझ रही हैं महिलाएं, रेलवे का विकास सिर्फ कागजों में

रेलवे के बड़े अधिकारी आए या यात्री सुविधा कमेटी (पीएसी) के सदस्य इससे मुसाफिरों को राहत और सुविधा में कोई फर्क पड़ता नहीं दिखता। जबकि भागलपुर मालदा रेल डिवीजन का ” ए ” श्रेणी वाला और सबसे ज्यादा कमाई देने वाला स्टेशन है। और ज़िले का नवगछिया पूर्व मध्य रेलवे का आदर्श स्टेशन है। यह रेलवे के कटिहार डिवीजन का हिस्सा है। नागरिक सेवा समिति के अध्यक्ष रिजवान खान यात्री सुविधाओं की मांग का स्मारपत्र देते देते थक से गए है। मगर बड़े अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। इन अधिकारियों के इस दफा भी आने पर जायज मांगों का लिफाफा इन्होंने सौपा है। भागलपुर से एक तो ट्रेनें ही कम है। साहेबगज से जमालपुर के बीच लोकल ट्रेनों का तो बेहद टोटा है। एक दो है भी तो जिसकी कोई समय सारणी नहीं है। इनमें शौचालय तक नहीं है। चार घंटे का सफर खासकर महिलाओं के लिए तकलीफदेह है। शंका का निवारण मुसाफिरों के लिए परेशानी का सबब है। इसके अलावे नौकरी पेशा वालों के लिए ड्यूटी पर 50 किलोमीटर की यात्रा भी परेशानी से भरी है।

दरअसल जमालपुर रेलवे कारखाना, बैंक, सरकारी दफ्तरों बगैरह में काम करने वाले हजारों लोग रोजाना भागलपुर, कहलगांव, साहेबगंज से सफर करते है। इनके वास्ते एक जोड़ी कोई ट्रेन नहीं जो इन्हें समय पर जमालपुर पहुंचा दे और शाम के वक्त ये वापस घर लौट जाए। नतीजतन ये लंबी दूरी ट्रेनों में सवार हो अपनी रोजी रोटी के वास्ते सफर करने को मजबूर है। नागरिक सेवा समिति के अध्यक्ष कहते है कि लंबी दूरी जैसे विक्रमशिला – आनंद विहार सुपर फास्ट , भागलपुर -यशवंतपुर (हफ्ता में एक रोज) , भागलपुर- आनंद विहार (हफ्ता में एक रोज), गया – हावड़ा एक्सप्रेस, मालदा – जमालपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस, दानापुर इंटरसिटी, वनांचल एक्सप्रेस बगैरह ट्रेनों में सामान्य कोच दो की बजाए चार कर देने से बगैर आरक्षण वालों की दिक्कतें दूर की जा सकती है। और आरक्षित बोगियों के मुसाफिरों को भी मुसीबत से बचाया जा सकता है। मगर डीआरएम से लेकर हावड़ा में बैठने वाले महाप्रबंधक का इस ओर कोई ध्यान नहीं है।

वाकई में सोमवार को महाप्रबंधक हरिंद्र राव दौरे पर आए थे। मंगलवार को यात्री सुविधा कमेटी आई थी। जिसमें इरफान आलम, एलपी जयसवाल और मनीषा चटर्जी यहां आकर भागलपुर, कहलगांव और नवगछिया स्टेशनों का मुआयना किया। मगर उनके जाते ही ढाक के तीन पात वाली बात हो गई। और तो और मुसाफिरों के हिसाब से ट्रेनों का टोटा होने की वजह से हरेक बोगी ठसाठस भरी रहती है। चाहे आरक्षण वालों को असुविधा हो तो हो। इसकी किसी को परवाह नहीं। ट्रेन आने के पहले प्लेट फार्म और परली साइड पटरियों पर जान की परवाह किए बगैर खड़े हो जाते है। और ट्रेन आते ही सवार होने के लिए ऐसे टूट पड़ते है जैसे युद्ध में दुश्मन पर। भेड़ -बकरी की तरह खिड़की -दरवाजे से किसी तरह ट्रेन में प्रवेश की कोशिश करते है। चाहे गोद में बच्चा लिए महिला हो या पुरुष। यह हाल रोजाना का है। इनको रोकने टोकने और इनकी हिफाजत करने वाला कोई नहीं। आरपीएफ, जीआरपी और रेल अधिकारी सभी मूक दर्शक। इनकी नजर केवल पोटली पर। ताकि कुछ हासिल किया जा सके।

जिले का नवगछिया स्टेशन रेलवे की सूची में आदर्श स्टेशन की श्रेणी में है। जहां न पीने के पानी का सही इंतजाम है और न ही प्लेटफार्म पर यात्री शेड। और न ही सुरक्षा। कब किसको लूट उतार हत्या कर पटरियों पर फेंक दिया जाएगा किसी को नहीं पता। आए रोज ऐसी वारदातें होती है। कभी महिला की तो कभी युवक की लाशें पटरियों से उठाती जीआरपी नजर आती है। शौचालय तो भागलपुर के एक नंबर प्लेटफार्म छोड़ बाकी पांच पर एक भी नहीं है। नवगछिया का भी यही हाल है। प्रधानमंत्री और रेलवे के चल रहे स्वच्छता मुहिम को ठेंगा है।

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