खुलासा: केजरीवाल सरकार के डंडे के बावजूद प्राइवेट स्कूलों की मनमर्जी, ईडब्लूएस दाखिले में खाली हैं 25% सीटें

शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसद सीटों पर ईडब्लूएस/डीजी (आर्थिक रूप से कमजोर/वंचित वर्ग) के बच्चों के दाखिले में दिल्ली के निजी स्कूलों की रपट अच्छी नहीं है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा गुरूवार को जारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ज्यादातर निजी स्कूलों में इस वर्ग के लिए आरक्षित सीटें पूरी तरह से भरी नहीं जाती, 16 फीसद स्कूलों में तो 24-25 फीसद तक सीटें खाली रह जाती हैं। पिछले सालों में निजी स्कूलों द्वारा आरटीई कानून के पालन में सुधार की दर में न केवल कमी आई है बल्कि ईडब्लूएस/डीजी वर्ग के बच्चों का ड्रॉपआउट भी पिछले तीन सालों से 10 फीसद के लगभग बना हुआ है।

शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 का एक अहम हिस्सा था निजी स्कूलों को इसके दायरे में लाना और गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के लिए सीटों का आरक्षण कर उन्हें भी इन स्कूलों में पढ़ने का अवसर देना। लेकिन, एनसीपीसीआर द्वारा अपने तरह के पहले सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के निजी स्कूलों में आरटीई के अनुपालन में अपेक्षित गंभीरता नहीं है। सर्वेक्षण में जो तथ्य सामने आए हैं, उनके मुताबिक, दिल्ली के निजी स्कूलों में हर साल ईडब्लूएस/डीजी वर्ग में दाखिले में बढ़ता हुआ ट्रेंड दिखा है, लेकिन इसमें सुधार की दर में कमी आई है और 2015-16 की तुलना में 2016-17 कोई सुधार दिखा ही नहीं। कानून के लागू होने से अब तक किसी भी शैक्षणिक सत्र में इसका पूरा अनुपालन यानि कुल आरक्षित 25 फीसद सीटें नहीं भरी गईं। साल 1010-11 में 6 फीसद सीटें, 2011-12 में 10 फीसद, 2012-13 में 13 फीसद, 2013-14 में 15 फीसद, 2014-15 में 17 फीसद, 2015-16 में 18 फीसद और 2016-17 में भी 18 फीसद सीटें ही भरी गईं।

एनसीपीसीआर के मुताबिक 1145 निजी स्कूलों ने जो आंकड़े साझा किए उसके मुताबिक 67.7 फीसद स्कूलों में ईडब्लूएस/डीजी के लिए आरक्षित सीटों में से शून्य से 11 फीसद सीटें खाली हैं, जबकि 16.5 फीसद स्कूलों में 11-19 फीसद और 15.8 फीसद स्कूलों में 24-25 फीसद सीटें तक खाली हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले की है जहां 2016-17 में निजी स्कूलों में कुल आरक्षित सीटों का औसत 14 फीसद खाली है, जबकि सबसे अच्छी रपट दक्षिणी और मध्य जिले की है जहां मात्र 3 फीसद सीटें खाली हैं।
आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा कि सबसे चिंता की बात है कि 2014 के बाद निजी स्कूलों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन ईडब्लूएस/डीजी वर्ग में दाखिलों की संख्या नहीं बढ़ी है। दिल्ली सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा, गलत अभ्यास पर लगाम लगनी चाहिए और ड्रॉप आउट्स की निरंतर निगरानी होनी चाहिए। ड्रॉपआउट का सीधा मतलब है कि ईडब्लूएस/डीजी वर्ग के बच्चों को वंचित करना।

उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार को उचित निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश जारी किया जाएगा। आयोग द्वारा क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) द्वारा कराए गए अध्ययन (फरवरी 2017 से अप्रैल 2017 के बीच) में ईडब्लूएस/डीजी वर्ग के बच्चों के ड्रÞॉप आउट दर का भी पता लगाया गया है। हालांकि, 2011 में आरटीई के लागू होने के आरंभिक दौर में ड्रॉप आउट 26 फीसद था जो 2014 में कम होतक 10 फीसद हो गया है, लेकिन उसके बाद किसी तरह की खास प्रगति नहीं देखी गई है। आयोग ने अपने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि स्कूलों द्वारा दिए गए दाखिला संबंधी कई आंकड़े स्कूलों के दौरा के दौरान गलत पाए गए।

आयोग की टीम ने स्कूल प्राध्यापकों से अपनी बातचीत में यह भी पाया कि निजी स्कूलों के 13.5 फीसद प्रिंसिपल आरटीई के सेक्शन 12(1) (सी) के तहत प्रवेश के पक्ष में नहीं है जिसमें सबसे प्रमुख कारण सरकार द्वारा इन स्कूलों को अतिरिक्त शैक्षणिक बोझ के लिए दी जाने वाली राशि का पर्याप्त नहीं होना बताया गया। स्कूल प्रिंसिपल्स ने अभिभावकों द्वारा गलत दस्तावेज दिए जाने की बात कही और कहा कि इसकी जांच का कोई उचित तंत्र विकसित नहीं किया गया है। कुछ प्राध्यापकों ने ईडब्लूएस/डीजी बच्चों के व्यवहार, सीखने की क्षमता और सफाई एवं स्वास्थ्य को भी मुद्दा बताया। प्रियंक कानूनगो ने कहा कि स्कूलों को समझना चाहिए वो राष्ट्रीय संसाधन हैं उनपर देश के हर बच्चे का बराबर का हक है। उन्होंने कहा कि शिक्षक और प्रबंधन भेदभाव कर रहा है, लेकिन बच्चों में आपस में भेदभाव नहीं है, कानून का आदेश है कि सब बच्चों को बराबर का हक मिले, इसमें किसी तरह का खिलवाड़ आयोग बर्दाश्त नहीं करेगा।

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