सूर्य देव को समर्पित ये मंदिर बना है रथनुमा, जानें क्या है कोणार्क मंदिर का महत्व
भारत के ओडिशा राज्य के कोणार्क में 13 वीं शताब्दी में बना कोणार्क मंदिर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर पूर्वी गंगा साम्रज्य के महाराजा नरसिंहदेव ने 1250 ई. में इस सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर का आकार रथनुमा है। कोणार्क का सूर्य मंदिर यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रुप में मान्यता दी है। यह मंदिर सूर्य देव अर्थात अर्क को समर्पित था। जिन्हें स्थानीय लोग बिंरचि नारायण कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को उसे अर्क क्षेत्र या पद्म क्षेत्र कहा जाता था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में 12 वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था। सूर्यदेव को सभी रोगों का नाशक माना जाता है और उन्होनें साम्ब के रोग को नष्ट कर दिया था। इसके बाद साम्ब ने सूर्य भगवान का मंदिर बनवाने का निश्चय किया। अपने रोग नाश के उपरांत चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए उसे सूर्यदेव की मूर्ति प्राप्त हुई। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनाई थी। साम्ब ने अपने बनवाए मित्रवन में एक मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया और इस स्थान को पवित्र माना जाने लगा।
सूर्य मंदिर असल में चंद्रभागा नदी के मुख्य में बनाया गया है लेकिन अब इसकी जलरेखा कम होती जा रही है। मंदिर सूर्य भगवान के रख के आकार में बनाया गया है। इस रथ में धातुओं से बने चक्कों की 12 जोड़ियां हैं जो 3 मीटर चौड़ी है और उसके सामने कुल 7 घोड़े हैं। इस मंदिर की रचना भी पारंपरिक कलिंगा प्रणाली के अनुसार ही की गई है। इस मंदिर को पूर्व दिशा की तरफ बनाया गया जिससे सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर के प्रवेश पर ही गिरे। वर्तमान के समय में इस मंदिर में कई हॉल हैं जिसमें मुख्य रुप से नाट्य मंदिर और भोग मंदिर शामिल हैं। कोणार्क मंदिर की दिवारों पर कामोत्तेजकर मूर्तिवश मैथुन के लिए भी प्रख्यात है। इस मंदिर के पास 2 विशाल मंदिर पाए जाते हैं। जिसमें से एक मंदिर को 11 वीं शताब्दी में खोजा गया था। कोणार्क मंदिर के पास का मंदिर वैष्णव समुदाय का है। मंदिर के पहिए धूपघड़ी का काम करते हैं जिसकी सहायता से हम दिन और रात का पता लगाया जा सकता है।