रेलवे ने निकाला रास्ता- पटरियों से हाथियों को दूर रखने के लिए सुनाई जाएगी मधुमक्खियों की आवाज

उत्तर पूर्वी सीमांत रेलवे (एनएफआर) पटरियों पर ट्रेनों से टकरा कर हाथियों के मारे जाने की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ऐसे उपकरण लगा रही है जिनसे मधुमक्खियों के भिनभिनाने की आवाज निकलती है, ताकि हाथी इन जगहों से दूर रहें। रेलवे के एक अधिकारी ने बताया कि असम के रांगिया में सफलता के बाद एनएफआर ने पश्चिम बंगाल के अपने अलीपुरद्वार प्रभाग में यह कोशिश करने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि मधुमक्खियों के भिनभिनाने की आवाज से हाथी दूर रहते हैं।

उन्होंने बताया कि मधुमक्खियों से निकलने वाली आवाज इंटरनेट से डाउनलोड की जाती है और इसे एम्प्लीफायर पर बजाया जाता है, जिससे हाथी लगभग 600 मीटर दूर ही रहते हैं। यह उपकरण रेलवे क्रॉसिंग और पटरियों से लगे महत्वपूर्ण स्थानों पर लगाया जा रहा है। एनएफआर के अन्तर्गत 27 हाथी गलियारे आते हैं। इन गलियारों में उत्तरी बंगाल, पूर्वी बिहार और उत्तर-पूर्व के क्षेत्र शामिल हैं।

अलीपुरद्वार संभाग के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी प्रणब ज्योति शर्मा ने बताया, “मध्य 2017 में रांगिया संभाग के गोलपाड़ा में पायलट परियोजना के तहत उपकरण लगाए जाने के बाद ट्रेन हादसे में एक भी हाथी की जान नहीं गई है।” पिछले सप्ताह असम में लमदिंग सुरक्षित वन क्षेत्र के समीप हवाईपुर में गुवाहाटी-सिलचर एक्सप्रेस से टकरा कर पटरियों के पास पांच हाथी मारे गए थे।

वहीं दूसरी तरफ, ओडिशा में 37,000 आदिवासी बच्चों को किंडरगार्टन से पोस्ट ग्रैजुएशन तक की मुफ्त शिक्षा देने वाला कलिंगा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेस (केआईएसएस) गरीब बच्चों के लिए कोलकाता में भी इसी तरह का केंद्र खोलने जा रहा है। केआईएसएस ने कोलकाता स्थित एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के साथ एक समझौता किया है जो 2019 के अकादमिक सत्र से पूर्वी महानगर में केंद्र का संचालन करेगा। पिछले साल अगस्त में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसे डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित किया था और केआईएसएस दुनिया का पहला आदिवासी विश्वविद्यालय बन गया है।

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