केजरीवाल की हुकूमत में हलकान शीला के ‘नवरत्न’
शीला दीक्षित की पुरानी हुकूमत में सूबे की सरकार चलाने वाले आला नौकरशाह ही मौजूदा आम आदमी पार्टी (आप) सरकार में भी तमाम अहम पदों पर काबिज हैं। यह दीगर बात है कि तब तत्कालीन मुख्यमंत्री दीक्षित से लेकर उनकी कैबिनेट के ज्यादातर मंत्रियों से इनके ताल्लुकात अच्छे थे, लेकिन केजरीवाल सरकार के मंत्रियों से इनके सुर-ताल नहीं मिल रहे। आलम यह है कि मंत्रियों और अधिकारियों के बीच लगातार टकराव की स्थिति बनी हुई है। बताया जा रहा है कि जल मंत्री और जल बोर्ड के आला अफसरों के बीच बेहतर तालमेल नहीं होने की वजह से ही खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली जल बोर्ड की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। दिल्ली के मुख्य सचिव एमएम कुट्टी पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित के प्रधान सचिव रह चुके हैं, जबकि दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी केशव चंद्रा भी दीक्षित के नवरत्नों में शुमार किए जाते थे। सरकार में कई अन्य पदों पर काबिज अफसर भी शीला सरकार में अहम किरदार निभा चुके हैं।
दिलचस्प यह है कि पिछली सरकार में मुख्यमंत्री, उनके मंत्रियों व विधायकों तक से बेहतर रिश्ते रखने वाले इन नौकरशाहों की वर्तमान सरकार के मंत्रियों से ठनी हुई है। पिछले दिनों लोक निर्माण विभाग के एक आला अफसर और सरकार के एक कद्दावर मंत्री के बीच की तल्खी सुर्खियों में रही तो हाल ही में दिल्ली जल बोर्ड को लेकर भी अफसर और मंत्री के बीच तनातनी की बात सामने आई। सरकार के सूचना व प्रसार निदेशालय में भी कुछ ऐसी ही गरमाहट महसूस की जा रही है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो यह सच है कि वर्तमान सरकार में नौकरशाही और मंत्रियों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद की स्थिति पैदा होती है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि अब कम से कम मुख्यमंत्री केजरीवाल के स्तर पर विवादों के निपटारे का काम हो रहा है। इस मायने में नौकरशाही और सरकार के बीच टकराव की जो स्थिति सरकार के शुरुआती दिनों में थी, वैसी अब नहीं है।
उन्होंने माना कि पहले यह आदेश दे दिए गए थे कि सभी विभागाध्यक्षों की बैठक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि उपमुख्यमंत्री लिया करेंगे लेकिन अब हालात बदले हैं और मुख्य सचिव ने एक बार फिर से ये बैठकें शुरू कर दी हैं। नौकरशाही और सरकार के बीच की तल्खी को लेकर सियासी पंडितों का कहना है कि असल में यह जंग राजनिवास और केजरीवाल सरकार के बीच है। हुकूमत के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा उपराज्यपाल को ताकतवर बताए जाने के बाद हर मामले में राजनिवास की ओर देखना अफसरों की मजबूरी है, जबकि प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज करने वाली केजरीवाल सरकार की यह दलील भी वाजिब है कि जनता के प्रति जवाबदेही उनकी है लिहाजा नौकरशाही को उनके हिसाब से चलना होगा। बहरहाल, मुख्यमंत्री केजरीवाल और पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के बीच लगातार चले सियासी विवाद को लाजिमी तौर पर दिल्ली नहीं भूली है और वर्तमान उपराज्यपाल अनिल बैजल के कार्यालय में आम आदमी पार्टी के विधायकों द्वारा मोहल्ला क्लीनिक के मुद्दे पर दिए गए धरने से भी साफ हो गया कि राजनिवास और दिल्ली सचिवालय के बीच कड़वाहट अब भी खत्म नहीं हुई है।