शुंगलू समिति की रिपोर्ट दे रही संकेत, उपचुनाव जीतना आप के लिए चुनौती
प्रचंड बहुमत से 14 फरवरी 2015 को दिल्ली में सरकार बनाने वाले आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बड़ी चुनौती तो आने वाले दिनों में उनके 20 विधायकों से खाली सीट पर उपचुनाव जीतने की है, लेकिन सबसे कठिन चुनौती इस हाल में सरकार के पांच साल के कार्यकाल को पूरा करना और अगले चुनाव में अपनी हैसियत बरकरार रखना है। पिछले महीने हुए राज्यसभा के चुनाव में तीन में से दो सीटें उन लोगों को दी गर्इं, जिनका इस पार्टी या उसकी तथाकथित विचारधारा से कोई नाता नहीं था। अब ‘आप’ नेता भी यह दावा नहीं कर रहे हैं कि वे अन्य दलों से किन मामलों में भिन्न हैं। विरोधियों को छांटने के प्रयास में केजरीवाल अकेले पड़ते जा रहे हैं।
केजरीवाल को अपने ही मंत्रियों के खिलाफ करनी पड़ी कार्रवाई
ईमानदार राजनीति करने का दावा करने वाले केजरीवाल को इन तीन सालों में अपने ही मंत्रियों के भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई करनी पड़ी। उनके बेहद करीबी मंत्री रहे कपिल मिश्र ने उनके करीबी सत्येंद्र जैन से लेकर खुद उन पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। कई विभागों के मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ सीबीआई भी जांच कर रही है। पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग की बनाई वीके शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ने सरकार की पोल खोल कर रख दी है।
वोटों का समीकरण कायम रखना जरूरी
कांग्रेस अपने वोट बैंक लाने के लिए हर तरकीब से अपनाने में लगी है, लेकिन केजरीवाल जानते हैं कि दिल्ली में सत्ता बरकरार रखने के लिए वोटों के समीकरण कायम रखना जरूरी है। उन्हें अपने शुरुआती दिनों के साथी कुमार विश्वास के बजाए उनका विरोध करने वाले विधायक अमानतुल्ला ज्यादा उपयोगी लगे। इसी वजह से केजरीवाल की बराबरी के हैसियत का दावा करने वाले विश्वास को अपशब्द बोलने वाले अमानतुल्ला का निलंबन पिछले दिनों रद्द किया और दिखावे के लिए विश्वास को मनाने उनके घर गए। केजरीवाल को पता है कि बिजली, पानी मुफ्त, अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने या उनमें सुविधा दिलवाने आदि के दम पर पूर्वांचल के प्रवासियों और अल्पसंख्यकों का पक्का समर्थन उन्हें दिल्ली में नंबर एक की दौड़ में आगे भी बनाए रखेगा।
हालात काबू से बाहर
हालात उनके काबू से बाहर निकलते जा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद जो भी चुनाव हुए, उनमें ज्यादातर में ‘आप’ पिछड़ती ही गई। नियम के खिलाफ अपने 21 विधायकों (एक का इस्तीफा हो चुका है) को संसदीय सचिव बनाकर उनकी सदस्यता खतरे में डाली। परिणाम हुआ कि राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश पर सभी की सदस्यता रद्द कर दी। पार्टी ने उसे अदालत में चुनौती दे रखी है, लेकिन जो हालात हैं, उसमें ‘आप’ के नेता भी मानते हैं कि इन 20 सीटों पर उपचुनाव होगें। सभी दलों ने उपचुनावों की तैयारी शुरू कर दी है।
सरकार बर्खास्त होगी तो भाजपा की कमियां ढक जाएंगी
सरकार अल्पमत में आने पर गिर जाएगी या संविधान विरोधी काम करने पर राष्ट्रपति उसे बर्खास्त कर देगें, यह केवल अनुमान ही हो सकता है, क्योंकि अगर भाजपा को यह करना होता तो शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट आने से लेकर बिना नियम विधानसभा चलाने से लेकर अनेक फैसलों के समय वह कर सकती थी। भाजपा के नेता यह मान कर चलते रहे हैं कि अगर केजरीवाल सरकार बर्खास्त की गई तो उसके सरकार की तमाम कमियां ढक जाएंगी और वे पहले से ज्यादा ताकतवर हो जाएंगें। यह सही भी लग रहा है।