आख़िरकार सेना ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रावत का हेलिकॉप्टर उतरने ही नहीं दिया। रख दिया हेलीपैड पर ड्रम
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का हेलिकॉप्टर भारतीय सेना ने उतरने ही नहीं दिया। मुख्यमंत्री के स्टाफ और सैन्यकर्मियों के बीच इसको लेकर कहासुनी भी हुई। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री के स्टाफ ने सैन्य अफसरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। हेलीपैड पर सेना ने ड्रम रख दिए थे।इस पर पायलट ने दूसरे स्थान पर हेलिकॉप्टर को उतारा। बताया जा रहा कि दूसरे स्थान पर हेलीकॉप्टर उतारे जाने से हादसा होते-होते बचा। आरोप है कि एक अफसर ने गेट पर अपनी कार लगाकर मुख्यमंत्री के काफिलो को भी रोका
दरअसल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तरकाशी जिले के सांवणी गांव में अग्निकांड का जायजा लेने जाना था। देहरादून कैंट स्थित जीटीसी हेलीपैड से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को प्रस्थान करना था। उन्हें उत्तरकाशी में जखोल के अस्थायी हेलीपैड पर उतरना था। जब दोपहर करीब 12 बजे मुख्यमंत्री की फ्लीट जीटीसी हेलीपैड पर पहुंची तो सेना के अफसर ने गोल्ड ग्राउंड के गेट पर अपनी कार लगाकर रास्ता रोक दिया। पुलिस अफसरों ने जब गाड़ी हटाने को कहा तो सैन्य अफसर ने कहा कि यह हमारा एरिया है, अपने मुख्यमंत्री को जाकर बता दीजिए। यहां हमारी मर्जी से लोग आ सकते हैं।
काफी बहस के बाद सैन्य अफसर ने मुख्यमंत्री के वाहन को आगे जाने दिया। तब जाकर मुख्यमंत्री जीटीसी हेलीपैड से उत्तरकाशी के लिए उड़ान भर सके। वापसी के समय जब मुख्यमंत्री का हेलिकॉप्टर हेलीपैड पर उतरना था, उससे पहले सेना के जवानो ने ड्रम रख दिए थे। जब हेलीकाप्टर लैंड करने के लिए नीचे उतर रहा था, उसी दौरान पायलट को ड्रम दिखाई दिए। पायलट ने सावधानी से काम लेते हुए दूसरे स्थान पर हेलिकॉप्टर की लैडिंग की। तब जाकर हादसा होते बचा। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भी नाराजगी जताई।उन्होंने कहा कि सेना की वह निजी जमीन नहीं है बल्कि देश की जमीन है। उधर सैन्य अफसरों का कहना है कि काफिला रोकने की बात गलत है। जहां लैंडिंग कराई जा रही थी, वह जगह सुरक्षित नहीं थी।