स्कंद षष्ठी 2018 व्रत विधि और कथा: क्रोध और अहंकार से मुक्ति के लिए किया जाता है कार्तिकेय का पूजन
मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान कार्तिकेय का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन कार्तिकेय के पूजन से रोग, दुख और दरिद्रता का निवारण होता है। इसी के साथ माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से काम, क्रोध, मद, मोह और अहंकार से मुक्ति मिलती है। इसी के साथ स्कंद षष्ठी के दिन पूजन के लिए कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने मोह माया में पड़े हुए नारद जी का उद्धार इस दिन किया था और उन्हें लोभ से मुक्ति दिलवाई थी। इस दिन कार्तिकेय के साथ भगवान विष्णु के पूजन का महत्व भी माना जाता है।
भगवान कार्तिकेय को दक्षिण दिशा का देवता माना जाता है। दंत कथाओं अनुसार वह अपने माता-पिता से रुष्ट होकर दक्षिण दिशा में रहने लगे थे। दक्षिण भारत में स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर कार्तिकेय देव का निवास स्थान माना जाता है। स्कंद षष्ठी के दिन व्रत करने वाले लोगों को दक्षिण दिशा में बैठकर ही पूजन करना चाहिए। इसके साथ पूजा में शुद्ध घी का दीपक जला कर ताजे फूलों से भगवान को अर्घ्य दें। इसके बाद मांस, मदिरा आदि से दूर होकर रात्रि में जमीन पर सोना ही लाभदायक माना जाता है।
दक्षिण भारत के लोग कार्तिकेय को अपना रक्षक मानते हैं और उनका पूजन श्रद्धा से करते हैं। मयूर भगवान कार्तिकेय का वाहन है, इस कारण से स्कंद षष्ठी के दिन उनका पूजन करना शुभ माना जाता है। कार्तिकेय को दक्षिण की भाषा में मुरुगन भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय की पूजा के बाद इस मंत्र का जाप करना लाभदायक माना जाता है।
देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।
कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते।।
दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव और पार्वती के पुत्र हैं। भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है। एक समय दैत्यों का अत्याचार और आतंक फैल गया था तब सभी देवता ब्रह्म देव के पास जाते हैं। ब्रह्म देव कहते हैं कि इस दैत्य का अंत भगवान शिव के पुत्र ही कर सकते हैं। भगवान शिव उस काल में माता सती के दुख में लीन थे। समय पश्चात माता पार्वती से उनका विवाह हो जाता है और वह दोनों देवदारु वन में एकांतवास में चले जाते हैं।
शिवजी के एकांत को भंग करने की हिम्मत किसी देवता में नहीं थी लेकिन काल चक्र के कारण उस समय एक कबूतर शिव-पार्वती की गुफा में चला जाता है और वहां भगवान शिव के वीर्य का पान कर लेता है। वीर्य का ताप इतना होता है कि वो उसको सहन नहीं कर पाता और गंगा को सौंप देता है। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभाजित हो जाता है और इससे 6 दिव्य बालकों का जन्म होता है। यह 6 बालक मिल कर 6 सिर वाले बालक में परिवर्तित हो जाता है। कार्तिकेय असुरों का वध करके देवों को उनका स्थान देते हैं।