कूड़े को रिसाइकिल करने का निगमों का दावा साबित हुआ खोखला
दिल्ली के तीनों नगर निगमों में प्रतिदिन हजारों मैट्रिक टन कचरा पैदा होता है। निगम का दावा था कि कूड़े को स्वचालित अपशिष्ट संसाधन संयंत्र से रिसाइकिल कर वह बिजली उत्पादित करेगा। जिससे कचरे का उपयोग होगा और कचरे कापहाड़ खड़े होने में भी कमी आएगी। लेकिन निगमों का यह दावा खोखला साबित हुआ है। दिल्ली में फैल रहे प्रदूषण रोकथाम की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहल को निगम ने कभी गंभीरता से नहीं लिया। जिसका नतीजा है कि गाजीपुर में कचरे का पहाड़ ढह जाने से दो लोगों की मौत हो गई।दूसरी तरफ, निगम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर दिल्ली को साफ सुथरा बनने के तराने गा रहा है। वहीं इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है। निगम की कचरे से बिजली मुहैया कराने की महत्त्वाकांक्षी योजना अधर में लटकी नजर आ रही है।
योजना थी कि उत्तरी नगर निगम नरेला-बवाना में दो हजार मैैट्रिक टन कूड़े से 24 मेगावाट बिजली प्रतिदिन उत्पादित होगी। दक्षिणी नगर निगम ओखला और तेहखंड में कूड़े का निपटान कर 16 और 15 मेगावाट बिजली बनाने और पूर्वी निगम इस मामले में थोड़ा कम उत्पादन कर गाजीपुर कचरा संयंत्र से करीब दस से 12 मेगावाट बिजली उत्पादन कर प्रदूषण अभियान में अपनी भूमिका निभाने का दंभ भर रहा था। दक्षिणी निगम का दावा था कि वह प्रतिदिन तीन हजार टन कार्बन डाईआॅक्साइड उत्सर्जन के उत्सर्जन रोकेगा। इसके लिए निगम ने छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगावाने के लिए पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन के साथ समझौता कर प्रतिदिन 2.5 मेगावाट की बिजली पैदा करने में सफलता हासिल करने की बात कर रहा था।