विज्ञान बनाम दृष्टि
हाल ही में इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का एक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण नाकाम हो गया क्योंकि वह ‘हीट शील्ड’ में फंस गया था। इस पर सोशल मीडिया पर आई कई प्रतिक्रियाओं के बीच एक मजाकिया टिप्पणी ने मुझे चौंकाया जिसमें कहा गया था कि ‘इसरो ने इस बार प्रक्षेपण के दौरान नारियल नहीं फोड़ा होगा, इसलिए यह असफल रहा!’ बेशक यह टिप्पणी व्यंग्यात्मक थी, लेकिन इसी संदर्भ में मुझे अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण से पहले किए गए हवन की तस्वीरें याद आर्इं। इसमें बाकायदा इसरो के उच्च स्तर के अधिकारी भी शामिल होते हैं। ऐसा लगता है कि हमारी वैज्ञानिक संस्थाओं में काबिज लोग दृष्टि के स्तर पर विज्ञान से दूर ही हैं। वे प्रक्षेपण से पहले किसी तरह का कोई ‘जोखिम’ नहीं लेना चाहते और इस चक्कर में टोटके अपनाने से भी परहेज नहीं किया जाता, भले ही वह घोर अवैज्ञानिक क्यों न हो!
वैज्ञानिक नजरिए से सोचने-समझने वाले लोगों के लिए कुछ नेताओं के बयान मनोरंजन होंगे, लेकिन देश में औसत समझ रखने वाले लोगों पर इन बातों का क्या असर पड़ता होगा! मसलन, कुछ समय पहले एक बड़े नेता ने कहा कि ‘राम के बाण इसरो की मिसाइल जैसे थे।’ इससे पहले गणेश के सिर पर हाथी के सिर को प्लास्टिक सर्जरी बताने और हजारों साल पहले आगे-पीछे उड़ने वाले वैदिक विमानों की बातें सभी को याद होंगी। हालत यह है कि संसद तक में ऐसे विचार जाहिर कर दिए जाते हैं कि ज्योतिष विद्या खगोल विज्ञान से कहीं आगे है, इसलिए ज्योतिष को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। मध्यप्रदेश से वहां के अस्पतालों में इलाज करने के लिए डॉक्टरों के साथ-साथ ज्योतिषियों को भी तैनात करने की खबर आई।
जबकि दुनिया भर में ज्योतिष विद्या के मसले पर चिंता जाहिर करते हुए कोनराड लॉरेंज सहित उन्नीस नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व भर के 173 वैज्ञानिकों ने करीब चार दशक पहले ही आम लोगों को सावधान करने के लिए एक बयान जारी करके बताया था कि ‘ज्योतिष शास्त्र कल्पना मात्र है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हमारा भविष्य हमारे द्वारा किए गए कार्यों पर निर्भर करता है, न कि ग्रहों की दशा और चाल पर।’ लेकिन ऐसा लगता है कि भारत में विज्ञान की हर यात्रा पर कर्मकांडों का पहरा लगा हुआ है। अखबारों में भविष्य बताने वाले राशिफल छापे जाते हैं, टीवी चैनल अपना महत्त्वपूर्ण वक्त ज्योतिष के हवाले कर देते हैं। लेकिन वहां वैज्ञानिक कार्यक्रमों के लिए कोई जगह नहीं होती है, जबकि भूत और पिशाचों पर बहसें होती हैं। कुछ समय पहले एक जज के अजीब विचार सामने आए कि मोरनी मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है। राजनेताओं और शिक्षित लोगों का बड़ा समूह विचारधारा के नाम पर मिथक को विज्ञान साबित करने की कोशिश में लगा रहता है। भारतीय विज्ञान कांग्रेस जैसे बड़े मंच से अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के सामने बिना किसी प्रामाणिक सबूत के वैदिक विमान तकनीक पर बात होती है।
नेहरू भारत के पहले ऐसे राजनीतिक थे, जिन्होंने वैज्ञानिकता और धार्मिकता के बीच द्वंद्व की बात की थी। विज्ञान के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बारे में बताते हुए उन्होंने ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया’ में लिखा- ‘सत्य और ज्ञान की खोज के लिए हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना होगा। नए सबूतों के आने पर पुराने निष्कर्ष बदलने होंगे। हमारी सोच तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए, घिसे-पिटे अनुमानों पर नहीं।’भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए 1963 में मशहूर अंतरिक्ष विज्ञानी सतीश धवन के नेतृत्व में सोसाइटी फॉर प्रमोशन आॅफ साइंटिफिक टेम्पर का गठन हुआ, लेकिन तत्कालीन सरकारों और नेताओं की अरुचि के चलते यह अपने संभावित लक्ष्यों को पाने में नाकाम रही। तर्कशील सोसाइटी जैसे संगठन अपने-अपने तरीके से लोगों को विज्ञान और वैज्ञानिकता सिखाते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय समाज अब तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करने में नाकाम रहा है। शायद यही वजह है कि एक पाखंडी बाबा के गिरफ्तार होने पर उनके हजारों भक्त भयानक हिंसा करते हैं, उत्पात मचाते हैं, वहीं तर्कशील और विज्ञान की दृष्टि रखने वाले प्रोफेसर यशपाल सारी उम्र विज्ञान और तर्क से जुड़े सवालों के जवाब देकर लोगों के मन में वैज्ञानिक विचार भरने का प्रयास करते रहे, लेकिन उन्हें वाजिब जगह नहीं मिली। गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और नरेंद्र दाभोलकर को सिर्फ इसलिए जान से मार दिया गया कि वे अंधविश्वासों पर करारी चोट करते थे। हाल ही में गौरी लंकेश की भी हत्या कर दी गई।
दरअसल, वर्तमान शिक्षा प्रणाली में ज्यादातर विद्यार्थियों के पास वैज्ञानिक और तार्किक मस्तिष्क नहीं है, इसलिए वे न तो तर्क पर आधारित आलोचनाओं को सहन कर पाते हैं और न ही एक शोधकर्ता के रूप में वे उपयुक्त साबित हो पाते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि राजनीतिकों को वैज्ञानिक शिक्षण प्रणाली में घुसपैठ करने देने से रोका जाए। भारतीय संविधान में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद, ज्ञानार्जन और सुधार की भावना का विकास करने को हरेक भारतीय नागरिक का मूल कर्तव्य माना गया है।