फाल्गुनी पूर्णिमा व्रत 2018: अच्छाई की हुई थी जीत, जानें क्या है होली के दिन व्रत करने का महत्व
फाल्गुन माह हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है, इसी के साथ यह अंतिम पूर्णिमा के साथ अंतिम दिन भी माना जाता है। फाल्गुनी पूर्णिमा का धार्मिक महत्व तो है ही इसी के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस पर्व का महत्व माना जाता है। पूर्णिमा पर उपवास भी किया जाता है जो सूर्योदय से आरंभ होकर चंद्रोदय तक रखा जाता है। इस माह पूर्णिमा का व्रत होली के दिन है। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के रुप में मनाया जाता है। इस दिन को नकारात्मकता का अंत करने का दिन होता है।
नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन व्रत के लिए कथा है कि एक समय असुर राजा हरिण्यकश्यपु की बहन राक्षसी होलिका का दहन हुआ था जो भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठी थी। भगवान की कृपा से राक्षसी होलिका स्वयं अग्नि में भस्म हो गई। इस दिन लकड़ियों, उपलों आदि को इकठ्ठा करके होलिका का निर्माण किया जाता है और मंत्रों के उच्चारण के साथ होलिका दहन किया जाता है। होलिका की अग्नि तेज होने के बाद उसके चारो तरफ परिक्रमा करके खुशी मनाई जाती है और भगवान विष्णु का स्मरण किया जाता है। होलिका को अहंकार और पापकर्मों का प्रतीक भी माना जाता है और इस दिन अहंकार की पवित्र अग्नि में आहुति दी जाती है।
फाल्गुनी पूर्णिमा पर व्रत करने से श्रद्धालु के सारे पाप मिट जाते हैं और कष्टों का निवारण हो जाता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। व्रत को पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय यानी चंद्रमा दिखाई देने तक किया जाता है। हर माह की पूर्णिमा में उपवास और पूजा करने की भिन्न विधियां होती हैं। 1 मार्च को होलिका दहन के साथ पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 1 मार्च प्रातः 8.57 से 2 मार्च 2018 की सुबह 6.21 तक रहेगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6.16 से लेकर 8.47 तक रहेगा।