अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: ठान लें तो कामयाबी कदम चूमेगी
कठिन परिश्रम और मेहनत के बल पर हर लक्ष्य को पाया जा सकता है, पर जरूरत है खुद की सोच बदली जाए। भले ही आप ग्रामीण परिवेश से आते हों और आपका बचपन गरीबी में बीता हो। यदि कोई लड़की यह ठान ले कि उसे अपनी मनमाफिक मंजिल पानी है तो कठिन रास्ते भी आसान लगने लगते हैं और परिवार का भी पूरा सहयोग मिलता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से पूर्व दिल्ली में पदस्थ तीन महिला पुलिस अधिकारियों ने बताया कामयाबी का मूलमंत्र। इनसे बातचीत की निर्भय कुमार पांडेय ने।
‘खुद की सोच बदलें’
मेरे पिता सेना में कार्यरत थे। माता पढ़ी-लिखी नहीं थीं, लेकिन उनकी सोच काफी बड़ी थी। माता-पिता चाहते थे कि उनके बच्चे कामयाब हों और अपने परिवार का नाम रोशन करें।
मैं बचपन से ही ऊंची सोच वाली लड़की रही हूं। स्कूली शिक्षा के दौरान मैं हर प्रकार की गतिविधियों में हिस्सा लेती थी। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद जब मैंने माता-पिता के सामने इच्छा जताई की मैं सिविल सर्विसेज में जाऊंगी तो परिजनों ने दिल्ली भेज दिया। यहां आने के बाद मैंने तय कर लिया था कि पुलिस सेवा में जाऊंगी और गरीब व जरूरतमंद लोगों की मदद करूंगी। मेरा मानना है कि सकारात्मक सोच के साथ आप काम करते हैं तो चुनौतियां बाधक नहीं बनतीं। आपका नजरिया कैसा है? इस पर सब कुछ निर्भर करता है। यदि आप काम को बोझ मानते हैं तो हर काम आपको चुनौती भरा लगेगा, लेकिन कठिन परिश्रम करने वालों को कठिन कार्य भी आसान लगने लगता है। मैं महिलाओं को कमजोर नहीं मानती। मेरा यह भी मानना है कि कुछ लोगों को सोच बदलने की जरूरत है। मैं दक्षिण भारत की रहने वाली हूं, जहां काफी कम उम्र (16-17 साल) में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी, जिसके बाद वे घर परिवार में उलझकर रह जाती थी। यदि मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ होता तो मैं शायद ही देश की राजधानी दिल्ली में आज इस मुकाम पर होती। लड़कियों की उन्नति के लिए समाज और परिवार की सोच बदलने की जरूरत है। वे लड़कियां जो पुलिस सेवा में आना चाहती हैं, वे अपनी सोच बदलें। अपने अधिकार को समझें। इसके लिए उन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत होने की जरूरत है। मैं मानती हूं कि हर माता-पिता अपनी बेटियों को लक्ष्य के चयन की स्वतंत्रता दें। यह मेरे लिए थोड़ा कठिन है। मेरे पति भी पुलिस अधिकारी हैं। इस कारण हम अन्य माता-पिता की तुलना में बच्चों को कम समय दे पाते हैं, लेकिन परिवार के सभी सदस्यों का पूरा सहयोग मिलता है। हमारी कोशिश होती है कि जब भी समय मिले, बच्चों के साथ बिताया जाए।
‘सकारात्मक सोच जरूरी’
मेरे पिता पुलिस विभाग में कार्यरत थे। मैंने बचपन से ही पुलिस की कार्यप्रणाली को करीब से देखा और समझा था। बड़ी होने पर मैंने महसूस किया कि अपने पिता की तरह ही पुलिस अधिकारी बन समाज और गरीबों की सेवा करूंगी। इसके लिए माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का पूरा सहयोग मिला और आज मैंने अपने कठिन परिश्रम के बल पर यह मुकाम हासिल किया। हम सब के जीवन में परिवार की एक अहम भूमिका होती है। पुलिस सेवा में दिन-रात कब काम से बाहर जाना पड़ जाए किसी को पता नहीं होता, लेकिन मैं हमेशा कोशिश करती हूं कि कुछ समय परिवारवालों को साथ बिताए जाएं, ताकि परिवार में मेरी कमी महसूस न की जाए। हालांकि, कभी-कभार समय नहीं दे पाती, लेकिन पारिवारिक पृष्ठभूमि पुलिस सेवा से जुड़ा हुआ है, लिहाजा परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी तरह से मेरे काम की सराहना करते हैं।मैं नहीं मानती, कार्य स्थल पर पुरुष और महिला केवल सहकर्मी होते हैं और जो मेहनत से कार्य करते हैं। उनके कार्य की सराहना हर कोई करता है। मेरी जैसी वर्दी पहने वाला हर शख्स सभी प्रकार की चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना करना जानता है। केवल सकारात्मक सोच के साथ हम सब को काम करना चाहिए। मैंने आज तक की सेवा में कभी महसूस नहीं किया कि मैं एक महिला हूं। मैंने आपने आप को केवल एक पुलिस अधिकारी ही माना है। मैं अपना कार्य सच्चाई और ईमानदारी से काम कर रही हूं। मैं यह मानती हूं कि कठिन परिश्रम, आत्मबल और ज्ञान के बल पर किसी भी मुकाम को पाया जा सकता है। लड़कियों को कमजोर मानने की भूल न तो परिवार और समाज को करनी चाहिए और न ही स्वयं में लड़की को कमजोर समझाना चाहिए। सकारात्मक सोच के साथ जो आगे बढ़ेगा वह जरूर कामयाब होगा। जो लड़कियां अपनी प्रतिभा को समझेंगी और उसी दिशा में मेहनत करेंगी वे एक दिन लक्ष्य को पाने में सफल होंगी।
‘खुद पर भरोसा सबसे अहम बात’
देखिए, मेरे पिता पुलिस सेवा में ही कार्यरत थे। उन्हीं से मिली प्रेरणा की बदौलत में आज इस मुकाम पर पहुंची हूं। हालांकि, शादी के बाद मेरे पति और ससुराल वालों का पूरा सहयोग मिल रहा है। इस कारण मैंने कभी पुलिस सेवा में असहज महसूस नहीं किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि पुलिस की होने की वजह से ही मैंने भारतीय पुलिस सेवा को चुना। सामान्य महिलाओं और अन्य क्षेत्रों में कार्य करने वाली महिलाओं की तुलना में पुलिस विभाग में कार्यरत महिलाओं को थोड़ी-बहुत दिक्कत जरूर होती है। 24 घंटे सतर्क रहना पड़ता है। वारदात होने के बाद घर परिवार को छेड़कर देर रात मौके में जाना पड़ सकता है, लेकिन परिवार के सदस्यों का सहयोग पूरी तरह से मिलता है। जब कभी समय मिलता है तो अधिकतर समय बच्चों और परिवार के सदस्यों के साथ बिताती हूं। मेरा मानना है कि देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में आए दिन छोटी-बड़ी घटनाएं मीडिया में बड़े स्तर पर कवर होती हैं। पर मेरी कोशिश होती है कि लोगों को सुरक्षित माहौल मिले। जेएनयू की सुरक्षा को चुनौती नहीं मानती। और हां जिस दिन मैंने वर्दी पहन ली थी, उसी दिन से चुनौतियों का सामना करने का प्रण ले लिया था और उसी दिशा में काम कर रही हूं।अभी भी पूरी तरह से हमारा समाज नहीं बदला है। समाज में आज भी कई लोग हैं, जो महिलाओं को कमतर आंकने की भूल करते हैं, जबकि महिलाएं ही हैं, जो घर का कार्य करने के साथ कार्यस्थल पर भी जी तोड़ मेहनत करती हैं और कठिन से कठिन कार्य करने को हमेशा तत्पर रहती हैं। कई बार तो लड़की होना ही बाधा मान लिया जाता है, लेकिन जो लड़कियां अपने आप पर भरोसा करती हैं। वे जरूर सफल होती हैं। दुनिया ही नहीं अपने देश में लड़कियों व महिलाओं के सफल होने का लंबी फेहरिस्त है। मैं तो बस इतना ही कहूंगी कि लड़कियां अपने आप को पहचाने और बेहतर शिक्षा ग्रहण करें। इसके लिए परिवार और समाज का भी सहयोग जरूरी है। केवल महिला दिवस ही नहीं हम महिलाओं लिए हर दिन खास होता है। चाहे वह घर में कार्य करने वाली महिला हो या पुलिस अधिकारी।