जानें क्या है होलिका दहन का महत्व, रंगोत्सव से एक शाम पूर्व जलाई जाती है अग्नि
होली के दिन होलिका दहन का विशेष महत्व माना जाता है। होली का त्योहार राक्षसी होलिका के अंत और भक्त प्रह्लाद के रुप में अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन को होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। सूरज ढलने के बाद प्रदोष काल शुरु होने के बाद होलिका दहन किया जाता है। इस दिन विशेष ध्यान रखना होता है कि जब भी होलिका दहन कर रहे हों तो पूर्णमासी की तिथि चल रही हो। इस वर्ष 1 मार्च को शाम 6.26 से लेकर 8.55 तक होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त माना जा रहा है। दहन के लिए 2.29 घंटे के लिए शुभ मुहूर्त रहेगा। पूर्णिमा की तिथि 1 मार्च को प्रातः 8.57 से लेकर 2 मार्च 6.21 मिनट तक है।
होलिका दहन के समय भगवान से अच्छी नई फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके अलावा लोग होलिका दहन की आग में पांच उपले भी जलाते हैं, मान्यता है कि इससे सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं। होलिका दहन के लिए पौराणिक कथा मानी जाती है कि एक समय हिरण्यकश्यप नाम का राजा था उसने अपनी प्रजा में आदेश दिया था कि जो भी भगवान विष्णु का पूजन करेगा उसे मृत्यु दंड दे दिया जाएगा। वहीं राक्षस राजा का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसने अपने पिता के आदेश का कभी पालन नहीं किया।
हिरण्याकश्यप ने अपने बेटे को सजा देने का फैसला किया और कई बार उसे मृत्यु देने का प्रयास किया, लेकिन भगवान की कृपा से वो हर बार बच जाता था। राक्षस ने अपनी बहन होलिका को बुलाया क्योंकि उसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। राक्षसी ने अपने भाई की बात मानते हुए भक्त प्रह्लाद को गोद में लिया और आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद ने अपने आराध्य का ध्यान किया। उस अग्नि में होलिका भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बाहर आ गए। विष्णु ने प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस कारण से होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है।