11 माह में 100 से ज्यादा मेमो, बागी विधायक ने चुटकी लेते हुए कहा- सीबीआइ पर विश्वास है?

आम आदमी पार्टी सरकार और नौकरशाही के बीच लड़ाई मुख्य सचिव की कथित पिटाई के बाद भले बहुत तीखी हो गई हो लेकिन सच बात यह है कि सरकार बनने के साथ ही यह टकराव शुरू हो गया था। इसे लेकर एक दिलचस्प कहानी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सुनाई। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार में एक बेहद महत्वपूर्ण पद संभालने के शुरुआती दिनों में ही उन्हें अंदाजा हो गया था कि आने वाले दिन बेहद मुश्किलों भरे हैं। पहले तो खाली यही कहा जाता था कि वे राजनिवास से फाइलें पास करा लें, लेकिन जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार करना शुरू किया तो पता यह चला कि उनकी सुबह की शुरुआत ही मुख्यमंत्री के कारण बताओ नोटिस से होती थी। हर दूसरे-तीसरे दिन ऐसा होता था, जब वे दफ्तर पहुंचते थे उनके हाथ में एक मेमो थमा दिया जाता था। उनकी मानें तो शुरू-शुरू में तो बड़ा बुरा लगा क्योंकि अपनी लंबी नौकरी में कभी किसी मुख्यमंत्री या मंत्री ने ऐसा बर्ताव नहीं किया था। लेकिन जब मेमो की संख्या एक दर्जन के पार हो गई तो फिर इसकी आदत हो गई। उन्होंने बताया कि अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि करीब 11 महीने में उन्हें 100 से ज्यादा मेमो मिले। खास बात यह है कि उन्होंने किसी भी मेमो का जवाब नहीं दिया।

हथियाई कुर्सी, फिर कौन छोड़े
हाल ही में सूबे के कांग्रेसियों का मंगल मिलन हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन के बीच के आपसी मतभेद खत्म करने का दावा किया गया। इस दावे की तस्दीक करने के लिए पार्टी कार्यालय में बाकायदा तमाम वरिष्ठ नेताओं को बुलाकर मीडिया के लोगों से गुफ्तगू की गई। इसी दौरान मंच पर बड़ा ही दिलचस्प वाकया देखने को मिला। पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित के बेहद करीबी कहे जाने वाले कुछ पूर्व मंत्री भी इस जलसे के मौके पर हाजिर थे। वरीयता क्रम में उनकी कुर्सियां पीछे लगी थीं। सभी कुर्सियों पर संबंधित नेता के नाम की पट्टी लगा दी गई थी ताकि कोई दूसरा नेता वहां जाकर न बैठ जाए। सभी लोग उसी अनुसार बैठे भी थे। एक नेता के नहीं पहुंचने के कारण आगे वाली एक कुर्सी खाली थी। दीक्षित के करीबी एक मंत्री ने कुछ देर तक तो इंतजार किया। उसके बाद जैसे ही उन्हें पता लगा कि संबंधित वरिष्ठ नेताजी के आने की संभावना अब बिल्कुल नहीं है, उन्होंने झट नाम की पर्ची उठाकर फेंकी और सबसे आगे जाकर जम गए। थोड़ी देर बाद वे नेता जी पहुंच गए जिन्हें उस कुर्सी पर बैठना था लेकिन सियासत में जो आपकी कुर्सी पर एक बार बैठ जाए, वह आसानी से उसको छोड़ता नहीं।

सीबीआइ पर विश्वास है!
नेतागण अपने तात्कालिक हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न तरह की बयानबाजी करते हैं। केंद्रीय एजंसियों, खासकर सीबीआइ के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बयानबाजी से सब वाकिफ हैं। लेकिन, नेताओं के बयान पर उन्हें कब कैसे घेरना है, वह दूसरा नेता ही समझ सकता है, मामला और मजेदार तब हो जाता है जब दूसरा नेता बागी बनकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोले। ऐसा ही वाकया हाल में हुआ जब कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा में कथित धांधली के खिलाफ धरने पर बैठे अभ्यर्थियों से मुलाकात कर केजरीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार को छात्रों की मांग तुरंत मान कर सीबीआइ जांच करानी चाहिए। इस पर ‘आप’ के बागी विधायक कपिल मिश्र ने चुटकी ली कि क्या अरविंद केजरीवाल सीबीआइ पर विश्वास रखते हैं?

एक रणनीति यह भी
दिल्ली सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों और सरकार में कायम आम आदमी पार्टी (आप) के बीच मुख्य सचिव की पिटाई प्रकरण पर जारी लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। ‘आप’ के नेता अधिकारियों से लेकर उपराज्यपाल पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं। साथ ही बजट बनाने का दबाव, दिल्ली में चल रहे काम के भी बंद होने के खतरे से लेकर लोगों की नजर में अपना पक्ष मजबूत दिखाने के लिए लगे हाथ ‘आप’ के नेताओं का एक दल अधिकारियों से बातचीत भी करने लगा है। दूसरी ओर, उनमें फूट डालने की अपवाह उड़ाई जा रही है। लाभ-हानि का सही अनुमान न होने पर लड़ाई के लिए तलवार भी ताने खड़े हुए हैं, ताकि काम न होने पर आसानी से यह कहा जाए कि केंद्र सरकार ही नहीं उपराज्यपाल और दिल्ली के अधिकारी भी उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं।

होली का हल्ला
शुक्रवार को महज घंटे भर के अंतराल पर दिल्ली कांग्रेस और दिल्ली भाजपा ने होली मिलन का आयोजन अपने दफ्तर में किया। दोनों ही जगह आयोजन की कमान पूर्वांचल (बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड) के प्रवासियों के हाथ में थी। होली उसी अदांज में नाच-गाकर मनाई जा रही थी। कांग्रेस के आयोजन में पूर्व सांसद महाबल मिश्र मुख्य कर्ताधर्ता थे तो दिल्ली भाजपा का पूरा आयोजन ही प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का दिख रहा था। भले ही भाजपा दिल्ली की सत्ता में न हो लेकिन उसकी केंद्र में तो सरकार है ही और कांग्रेस हर जगह सरकार से बाहर, इसलिए भीड़ तो भाजपा के यहां ही जुटनी थी। तभी तो लग रहा था कि जैसे दिल्ली में बिहार का होली मेला लगा हो।

ये अपनी खाल बचाने में माहिर
दिल्ली पुलिस अगर खुद पर लगे आरोपों की जांच गंभीरता से करे तो फिर दिल्ली का कायाकल्प होने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता। पुलिस वाले गोल-मटोल जवाब देकर अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने की कोशिश करते हैं। बीते दिनों जहांगीरपुरी में एक मीडिया संस्थान से जुड़े युवक के साथ पुलिस वालों की बर्बरता पूरे दिन चर्चा में बना रहा। आरोप लगा कि पुलिसवालों ने फोटो खींचने और वीडियो बनाने का विरोध कर उस युवक पर कहर बरपाया। थाने में बैठाए रखा गया और अपमानित किया। जब बवाल शुरू हुआ तो आला अधिकारी ने यह जवाब देकर शांत करने की कोशिश की कि दोनों तरफ से मारपीट और झगड़े हुए। दोनों तरफ से एमएलसी होनी है। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि पुलिस वाले अपने कर्मचारियों के बचाव करने में पीछे नहीं हटती। – बेदिल

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