नाथूला में भारत ने ढेर किए थे चीन के 300 सैनिक, इस युद्ध की बात नहीं करता ड्रैगन
डोकलाम में करीब ढाई महीने तक भारत और चीन के बीच चले गतिरोध के दौरान चीनी मीडिया ने बार-बार भारत को 1962 के युद्ध में मिली हार की याद दिलायी। लेकिन उस युद्ध के करीब पांच साल बाद ही भारत और चीन के बीच सीमा पर लड़ाई हो गयी थी जिसके बारे में चीन बात करना पसंद नहीं करता। दोनों सेनाओं के बीच ये लड़ाई नाथू ला में हुई थी। ये इलाका डोकलाम घाटी से ज्यादा दूर नहीं है। चार दिन की इस लड़ाई में 300 चीनी सैनिक मारे गये थे और 65 भारतीय जवान शहीद हुए थे। आपको बता दें कि करीब एक महीने चले 1962 के युद्ध में चीन के 722 सैनिक मारे गये थे। 1967 में चीन और भारत के बीच नाथूला में हुई लड़ाई दोनों देशों के बीच आखिरी हिंसक झड़प थी।
समद्र तल से 14,200 फीट ऊपर स्थित नाथूला तिब्बत-सिक्किम सीमा का अहम दर्रा है जो गंगटोक-याटुंग-ल्हासा कारोबारी मार्ग का अहम हिस्सा है। चीनी और भारतीय सैनिक करीब 30 मीटर की दूरी पर यहाँ तैनात रहते हैं। भारत और चीन की 3,488 किलोमीटर लम्बी सीमा पर नाथू ला में दोनों देशों के सैनिक सबसे करीब होते हैं। इस दर्रे के उत्तरी तरफ चीन का नियंत्रण है और दक्षिणी तरफ भारत का। उस समय सिक्किम भारत का आधिकारिक तौर पर अंग नहीं था। भारत ने उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली थी। चीन और सिक्किम सीमा पर भारतीय सैनिक तैनात रहते थे। 13 जून 1967 को चीन ने दो भारतीय राजनयिकों को पेकिंग (बीजिंग का पुराना नाम) से जासूसी के आरोप में निकाल दिया। दूतावास के बाकी कर्मचारियों को बंधक रखा गया था। भारत ने जवाब में चीनी दूतावास के अधिकारियों को निकाल दिया। तीन जुलाई को भारतीय दूतावास से चीनियों का घेरा हटा लेकिन दोनों देशों के रिश्ते बेहत तल्ख हो चुके थे।
उस समय नाथू ला ब्रिगेड की कमान संभाल रहे मेजर जनरल(रिटायर्ड) शेरू थपलियाल बताते हैं कि चीन ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत को नाथू ला और जेलेप ला दर्रा खाली करने के लिए चेतावनी दी थी। जब भारतीय सेना के पास ये खबर पहुंची तो उसने जेलेप ला दर्रा खाली कर दिया और इस पर आज भी चीन का कब्जा है। लेकिन मेजर जनरल सगत सिंह (जो बाद में लेफ्टिनेंट जनरल बने और 1971 के भारत-पाक युद्ध के हीरो रहे) ने नाथू ला दर्रा खाली करने से इनकार कर दिया। चीनियों ने नाथू ला में लाउडस्पीकर से 1962 जैसे हश्र के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी। चीनी सेना बड़ी संख्या में सीमा की तरफ बढ़ी लेकिन सीमा पर पहुंच कर चीनी वापस लौट गये। सगत सिंह ने उनकी इस घुड़की को भाव नहीं दिया जिससे चीनी और बौखला गये।
साल 1966 और 1967 की शुरुआत में चीन दुष्प्रचार, धमकी और घुसपैठ सभी का भारतीय इलाके पर कब्जे के लिए प्रयोग कर चुका था। अगस्त 1967 में चीन ने नाथू ला के दक्षिण मुहाने पर 29 लाउडस्पीकर लगा दिए। सगत सिंह ने सीमा पर तीन परतों वाली कंटीली बाड़ लगाने का फैसला किया। 20 अगस्त को भारतीय सेना ने कंटीली बाड़ लगाना शुरू कर दिया। 23 अगस्त को करीब 75 चीनी सैनिक युद्ध की पोशाक में असलहों समेत सीमा के अतिरिक्त इलाके तक पहुंच गये और वहां आकर रुक गये। उनकी इस टुकड़ी के नेता ने सीमा पर आकर माओ त्से तुंग की रेड बुक से कुछ चीजें पढ़ीं और बाकी टुकड़ी के लोग उसके पीछे उसकी बात दोहराते रहे। चीनी टुकड़ी में उनका टुकड़ी नायक ही एकमात्र शख्स था जो थोड़ी-मोड़ी अंग्रेजी बोल पाता था। भारतीय सेना चीनियों की इस हरकत को पूरी सतर्कता के साथ देखती रही। करीब एक घंटे बाद चीनी वापस लौट गये। उसके बाद भी कई बार चीनियों ने ऐसी ही हरकतें कीं।
पांच सितंबर 1967 को भारतीय सेना ने कंटीली बाड़ की जगह कॉनसर्टेिना क्वॉयल (छल्लाकार बाड़) लगानी शुरू कर दी। चीनी टुकड़ी के प्रमुख ने भारतीय कमांडिंग अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह से इस पर बहस की जिसके बाद काम रुक गया लेकिन सात सितंबर को दोबारा काम शुरू हो गया। इसके बाद करीब 100 चीनी सैनिक मौके पर लपके। दोनों पक्षों के बीच झड़प हो गयी। जाट रेजिमेंट के सिपाहियों ने चीनियों की पिटाई कर दी। चीनियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी। भारतीयों ने जैसे को तैसा जवाब दिया।