सहमति हो तो एक सप्ताह में हो सकता है तलाक, छह महीने वक़्त देना जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 सितंबर) को एक अहम फैसले में कहा कि तलाक चाहने वाले हिंदू दंपती के बीच आपसी रजामंदी है तो उन्हें इसके लिए छह महीने तक अलग रहने के कानून के अनुपालन करना जरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “आपसी रजामंदी से एक हफ्ते में तलाक मिल सकता है, छह महीने के अलग रहने का नियम बाध्यकारी नहीं है और इसमें छूट दी जा सकती है।” देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि अगर दंपती के बीच सुलह-समझौते की सभी कोशिशें निष्फल हो चुकी हों तो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत छह महीने तक अलग-अलग रहने के कानून में ढील दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर तलाक चाहने वाला जोड़ा पहले से ही एक साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहा हो तो छह महीने अलग रहने के प्रावधान में छूट दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसे मामलों में छह महीने और अलग रहने की बाध्यता से मामला भरण-पोषण इत्यादि के मामले और लंबे समय के लिए लटक जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस प्रावधान का मकसद है कि दोनों पक्ष किसी भी तरह बरकरार रखने में विफल हैं तो आपसी सहमति से विवाह तोड़ें और उपलब्ध विकल्पों का लाभ ले सकें। छह महीने की मियाद इसलिए रखी गयी ताकि जल्बाजी में लिए गए तलाक के फैसलों पर लगाम लग सके और समझौते की कोई गुंजाइश हो तो उसका लाभ लिया जा सके। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की खंडपीठ ने ये हिंदू विवाह अधिनियम के धारा 13बी(2) को स्पष्ट करते हुए ये फैसला दिया।
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अगर दोनों पक्ष न्यूनतम छह महीने और अधिकतम 18 महीने तक तलाक की अर्जी वापस नहीं लेते तो अदालत को विवाह खत्म होने का आदेश दे देना चाहिए। धारा 13बी(2) के तहत दिया गया समय दोनों पक्षों को अपने फैसले पर विचार करने के लिए दिया जाता है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि समझौते की सभी कोशिशें विफल हो जाने, बच्चे, गुजाराभत्ता और बाकी मसलों पर आपसी सहमति बन जाने की स्थिति में छह महीने तक तलाक के लिए इंतजार करने के नियम में छूट दी जा सकती है।