इच्छा मृत्यु की वसीयत को मान्यता दी सुप्रीम कोर्ट ने

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में इस तथ्य को मान्यता दे दी कि असाध्य रोग से ग्रस्त मरीज इच्छा-पत्र (वसीयत) लिख सकता है। अदालत का यह फैसला चिकित्सकों को असाध्य रोग के मरीज के जीवन रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति देता है। अदालत ने कहा है कि जीने की इच्छा नहीं रखने वाले व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में शारीरिक पीड़ा सहने नहीं देना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा है कि निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु और अग्रिम इच्छा पत्र लिखने की अनुमति है। संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून बनने तक फैसले में प्रतिपादित दिशा-निर्देश प्रभावी रहेंगे। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।

पीठ ने अपने फैसले में कुछ दिशा-निर्देश भी प्रतिपादित किए हैं। जिनमें कहा गया है कि कौन इस तरह के इच्छा पत्र का निष्पादन कर सकता है और किस तरह से मेडिकल बोर्ड इच्छा मृत्यु के लिए अपनी सहमति देगा। इच्छा-पत्र भी वसीयत का ही एक रूप है। संविधान पीठ ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। इस याचिका में अनुरोध किया गया था कि असाध्य रोगों से ग्रस्त मरीजों को शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाने और मृत्यु का वरण करने के लिए जीवन रक्षक उपकरणों को हटाने की अनुमति प्रदान की जाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि असाध्य बीमारी से ग्रस्त मरीजों के मामले में ऐसे मरीज के नजदीकी मित्र और रिश्तेदार इस तरह अग्रिम निर्देश दे सकते हैं और इच्छा-पत्र का निष्पादन कर सकते हैं। इसके बाद मेडिकल बोर्ड ऐसे इच्छा-पत्र पर विचार करेगा। प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हालांकि संविधान पीठ की चार और अलग-अलग राय हैं, परंतु सभी जज इस बात पर एकमत हैं कि चूंकि एक मरीज में जीने की इच्छा नहीं होने पर उसे निष्क्रिय अवस्था की पीड़ा सहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, इसलिए ऐसे इच्छा-पत्र (वसीयत) को मान्यता दी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 2011 में अरुणा शानबाग के मामले में निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु को मान्यता देते हुए अपने फैसले में ऐसे मरीज के जीवन-रक्षक उपकरण हटाने की अनुमति दी थी जो एक सुविज्ञ निर्णय करने की स्थिति में नहीं है। केंद्र सरकार ने 15 जनवरी, 2016 को अदालत को सूचित किया था कि विधि आयोग ने अपनी 241वीं रिपोर्ट में चुनिंदा सुरक्षा उपायों के साथ निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु की अनुमति देने की सिफारिश की थी।

अदालती घटनाक्रमें इच्छा मृत्यु पर एक विधेयक का मसौदा तैयार करने की सलाह दी और कहा कि हाईकोर्ट में दायर ऐसी याचिकाओं पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद ही फैसला हो।

’एक मई, 2005: सुप्रीम कोर्ट ने असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु की अनुमति देने संबंधी गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका को मंजूरी दी। अदालत ने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा।
’16 जनवरी, 2006: अदालत ने दिल्ली चिकित्सा परिषद( डीएमसी) को हस्तक्षेप करने की अनुमति दी और निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर दस्तावेज दायर करने का निर्देश दिया।
’28 अप्रैल, 2006: विधि आयोग ने निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु पर एक विधेयक का मसौदा तैयार करने की सलाह दी और कहा कि हाईकोर्ट में दायर ऐसी याचिकाओं पर विशेषज्ञों की राय लेने के बाद ही फैसला हो।

’शीर्ष अदालत ने कहा, निष्क्रिय अवस्था में इच्छा मृत्यु और अग्रिम इच्छा पत्र लिखने की अनुमति
’संविधान पीठ ने कहा, मामले में कानून बनने तक फैसले में प्रतिपादित दिशा-निर्देश प्रभावी रहेंगे
’शीर्ष अदालत ने कहा कि असाध्य बीमारी से ग्रस्त मरीजों के मामले में ऐसे मरीज के नजदीकी मित्र और रिश्तेदार इस तरह अग्रिम निर्देश दे सकते हैं और इच्छा-पत्र का निष्पादन कर सकते हैं।

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