आठवें थिएटर ओलंपिक्स में जापान के नाट्य समूह द्वारा नाटक ‘सकुरा’ का जोरदार मंचन
भारत में चल रहे आठवें थिएटर ओलंपिक्स के दूसरे चरण का एक और उल्लेखनीय नाटक रहा जापान के नाट्य समूह कमिगातामेई-तोमोनोकेई द्वारा प्रस्तुत किया गया नाटक ‘सकुरा’ (हिरोशिमा-नागासाकी का शोक गीत)। इस नाटक की निर्देशक, नर्तकी और अभिनेत्री थीं कीइन योशिमुरा। नाटक जापानी कवि संगिची तोगे की छह कविताओं पर आधारित था जिसका शीर्षक है ‘जेनबाकू शीशू’। इन कविताओं का पाठ भी स्वयं कीइन ने किया था। इन कविताओं के साथ निर्देशक और अभिनेत्री कीइन कहती हैं, विश्व शांति मेरा मिशन है और मैं चाहूंगी, प्रार्थना करूंगी कि इस धरती पर कभी हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुर्घटना दुबारा न हो। मैं विश्व भर के सभी मनुष्यों के सच्चे सुख की आशा और प्रार्थना के साथ अंतरराष्ट्रीय सहभागिता करना पसंद करूंगी। इस नाटक का निर्माण हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने की 70वीं बरसी पर किया गया है। निर्देशक कहती हैं कि जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बरसे परमाणु-बम के हृदयविदारक अनुभव से हम जापानी अभी भी गुजर रहे हैं और पूरे विश्व में शांति चाहते हैं। शांति की इसी प्रेरणा ने मेरे इस नाटक की पृष्ठभूमि तैयार की।
70 साल पहले, द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान ने हार और महाविनाश का सामना किया। तब से हम जापानियों ने दिल की गहराइयों से वैश्विक शांति लाने का प्रयास किया है। युगों से जापानियों के मन-मस्तिष्क की शक्ति प्रकृति की संगति में जी रही है, जो कि हमारे चार मौसमों की बानगी है। हमारे लिए प्रकृति ईश्वर का जन्म है। जापानी संस्कृति, ब्रह्मांड के सर्वस्व शुद्धीकरण के लिए ईश्वर से प्रार्थना है और हमारी पारंपरिक संस्कृति, जो कि हमारे जीवन का मर्म है, प्रकृति को ‘वा नो कोकोरो’ के रूप में प्रतिबिंबित करती है, जिसका अर्थ है, सद्भाव की आत्मा। अपने इस कार्य ‘सकुरा’ के साथ मैं विश्व भर में सौंदर्य, सद्भाव और शांति की आधारशिलाओं में से एक होने की आशा करती हूं। कीइन योशिमुरा जापान की परंपरागत कमिगाता मेई नृत्यशैली की सर्वश्रेष्ठ जापानी कलाकार हैं और कीइन का जादू दर्शक सात मार्च को पहले ही अभिमंच में इतालवी निर्देशक पीनो द बुदुओ के नाटक ‘द सस्पेंडेड थ्रेड’ में देख चुके थे, इसलिए सकुरा के दिन कीइन के नाम पर ही एलटीजी प्रेक्षागृह दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। हमेशा की तरह ही अपनी इस नाट्य-नृत्य संरचना से एक घंटे तक उन्होंने हिरोशिमा और नागासाकी के उस दारुण दु:ख से दर्शकों को रूबरू कराया जिससे जापानी आज भी गुजर रहे हैं।
नाटक की शुरुआत से अंत तक मंच सज्जा ऐसी थी जिसने दर्शकों को सर्वप्रथम जैसे बम विस्फोट के बाद के वीरान हिरोशिमा और नागासाकी में ले जाकर खड़ा कर दिया था, फिर धीरे-धीरे उसी वीरानी से उद्भूत होती शांति में दर्शक अंत तक उतरते रहे, इस शांति को आप नर्तकी और अभिनेत्री कीइन के साथ चलते हुए बिलकुल वैसे ही महसूस कर सकते थे जैसे कलिंग विजय के बाद चक्रवर्ती सम्राट अशोक युद्ध से विरक्त हुआ हो और उसके चारों ओर शांति का प्रभामंडल बन रहा हो और वह अपने साथ-साथ आपको भी उसी अपूर्व शांति में लपेटे युद्धभूमि से निकल रहा हो। कीइन की यह विशेषता है कि वे दर्शकों को अपने साथ मंच पर लिए चलती हैं। दर्शक शरीर से प्रेक्षागृह में बैठे होते हैं पर उनका मन कीइन के साथ विचरण कर रहा होता है। कीइन की भाव-भंगिमाओं और नृत्य के साथ दर्शक भी उसी सुर-लय-ताल में थिरकते हैं। यही हुआ आठ मार्च को एलटीजी प्रेक्षागृह में। कीइन दर्शकों को युद्ध और वीरानी से शांति की ओर लेती चली गर्इं और दर्शक भी मंत्रमुग्ध से खिंचे चले गए उनके पीछे-पीछे।
पर, अफसोसजनक बात यह है कि भारतीय दर्शकों ने कीइन के उस निवेदन पर ध्यान नहीं दिया जो उन्होंने नाटक की शुरुआत में दर्शकों से किया था। उन्होंने निवेदन किया था कि नाटक की समाप्ति पर ताली न बजाएं और प्रकाश खत्म होने पर न सिर्फ हिरोशिमा और नागासाकी के पीड़ितों के लिए बल्कि वैश्विक शांति के लिए आंखें बंद करके तबतक प्रार्थना करें जबतक दुबारा मंच पर प्रकाश वापस न आए और नाटक खत्म होने पर अपने दिल की गहराइयों में सकुरा की एक पंखुड़ी (जापानी भाषा में चेरी ब्लॉसम के फूल को सकुरा कहते हैं) समेटकर शांत मन से अपनी जगह पर वापस जाकर बैठ जाएं और सकुरा की उसी पंखुड़ी को मन में लेकर वैश्विक शांति की कामना के साथ घर लौटें। पर अफसोसजनक था यह देखना कि नाटक खत्म होने और मंच पर दुबारा प्रकाश आने के बीच पूरा प्रेक्षागृह खाली हो चुका था। गिनकर चार-पांच दर्शक बचे थे। हिरोशिमा-नागासाकी के पीड़ितों के प्रति हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, विश्व-शांति और विश्वबंधुत्व की कामना करते हुए मैं यह भी कहना चाहूंगी कि भारतीय जनमानस में अभी भी नाटक देखने की तहजीब का विकास होना बाकी है।