राज्यसभा चुनाव: बीजेपी ने चली बड़ी चाल, सपा से दोस्‍ती के बावजूद हार सकता है मायावती का उम्‍मीदवार

उत्तर प्रदेश में राज्य सभा चुनाव रोचक हो गया है। बीजेपी ने बसपा प्रत्याशी भीमराव अंबेडकर का खेल बिगाड़ने की तैयारी कर ली है। पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को समर्थन देने का एलान किया है। बता दें कि यूपी में कुल 10 सीटों पर राज्यसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी ने आठ उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। अनिल अग्रवाल को बीजेपी का नौवां प्रत्याशी माना जा रहा है। अग्रवाल ने निर्दलीय उम्मीदवार को तौर पर पर्चा भरा है। आज नामांकन की आखिरी तारीख है। 23 मार्च को वोटिंग होगी। नतीजे भी उसी दिन आएंगे। सपा ने जहां जया बच्चन को उम्मीदवार बनाया है, वहीं बसपा ने सपा, कांग्रेस और आरएलडी के भरोसे भीमराव अंबेडकर को प्रत्याशी बनाया था।

अनिल अग्रवाल गाजियाबाद के कारोबारी हैं और समाजसेवी हैं। वो दिवंगत कांग्रेसी और बसपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश दास के रिश्तेदार भी हैं। अग्रवाल ने बीजेपी के फॉर्म ए और बी के साथ दोपहर करीब तीन बजे नामांकन दाखिल किया। अग्रवाल के मैदान में आने के बाद माना जा रहा है कि बीजेपी विधायकों को जोड़-तोड़ सकती है। कुछ निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन अग्रवाल को मिल सकता है। इस बीच, बीजेपी नेता और योगी सरकार में मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा है कि उनकी पार्टी की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लोग राज्यसभा पहुंचे।

बता दें कि 403 सदस्यों वाली यूपी विधानसभा में सपा के 47 और बसपा के मात्र 19 विधायक हैं। राज्यसभा सांसद चुनने के लिए 37 वोटों की दकरार है। यानी सपा के पास 10 सरप्लस वोट हैं। इस संख्या बल पर सपा एक उम्मीदवार को आसानी से राज्यसभा भेज सकती है। 10 सरप्लस वोट सपा बसपा उम्मीदवार को देगी। कांग्रेस के पास 7 विधायक हैं। इस तरह बसपा को कुल 36 (बसपा के 19, सपा के 10 सरप्लस, कांग्रेस के सात) वोट मिलने के आसार हैं। अजित सिंह की आरएलडी और निषाद के एक विधायक ने भी बसपा उम्मीदवार को समर्थन देने का एलान किया है। इस तरह बसपा को कुल 38 वोट मिल सकते हैं लेकिन ऐन वक्त पर बिजनेसमैन अग्रवाल के मैदान में उतरने से जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त की आशंकाओं से इनकार करना मुश्किल है। अगर ऐसा होता है तो हाथी के संसद पहुंचने की राह यह बड़ा रोड़ा होगा। दरअसल, बीजेपी चाहती है कि सपा-बसपा के मिलन का फायदा इन्हें ना मिले ताकि 2019 में ये दोनों दल अलग-अलग रहें।

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