गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की जीत के बाद जश्न में डूबे सपा कार्यकर्ता

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की जीत के बाद पार्टी मुख्यालय में जश्न का माहौल है। सपा कार्यकर्ताओं में सबसे ज्यादा इस बात की खुशी है कि पार्टी ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की रिक्त की गई लोकसभा सीटों पर कब्जा किया है। सपा मुख्यालय पर ‘बुआ-भतीजा जिंदाबाद’ के नारे भी लग रहे हैं। यहीं नहीं सपा कार्यालय पर कुछ कार्यकर्ता सपा के साथ-साथ बसपा का नीला झंडा भी लहरा रहे हैं। जीत से उत्साहित कार्यकर्ता गुलाल खेल कर खुशियां मना रहे हैं और मिठाइयां बांट रहे हैं। उधर, भाजपा कार्यालय पर सुबह तो कार्यकर्ताओं की थोड़ी भीड़ भी थी जो दोपहर होते कम हो गई। भाजपा के नेताओं ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष महेंद्र पांडे अचानक दिल्ली चले गए हैं। सपा प्रवक्ता और विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह साजन ने बताया कि सपा और बसपा का समझौता था जिसने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को आज हरा दिया। जब 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां गठजोड. बनाकर लड़ेंगी तो हम केंद्र में प्रधानमंत्री को हराएंगे।

यह बस एक बानगी भर है। आगे आगे देखिये होता है क्या। सपा के विधानपरिषद सदस्य आनंद भदौरिया ने कहा कि सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि हमने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीटें उनसे छीनी हैं, जो उनके लिए सबसे प्रतिष्ठा वाली सीटें थीं। पांच बार लगातार सांसद रह चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर पर सपा के उम्मीदवार प्रवीन निषाद ने जीत हासिल की है। इस सीट पर भाजपा को 28 साल बाद हार झेलनी पड़ी है। 1991 से ही यह सीट भाजपा के पास थी। इसी तरह फूलपुर सीट पर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को 2014 के पिछले लोकसभा उपचुनाव में 5,03,564 वोट मिले थे। वहीं सपा और बसपा के उम्मीदवार को मिलाकर 358970 वोट मिले थे। साफ है कि दोनों को मिलाकर भी अंतर 144594 वोटों का था।

मौर्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद विधान परिषद के सदस्य बन गए और उन्होंने यह सीट छोड़ दी। इसलिए यहां लोकसभा के उपचुनाव हुए। हिंदू महासभा के नेता रहे गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने 1991 में भाजपा के टिकट पर गोरखपुर सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1996 में भी वह जीते। फिर 1998 में उनके शिष्य और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद बने और तब से बीते साल तक वह इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था और वह विधान परिषद के सदस्य बन गए।

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