उपचुनाव हारने के बाद बीजेपी ने वापस लिए राज्य सभा चुनावों के दो उम्मीदवार
बिहार और उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों पर हुए उप चुनावों में बीजेपी की हार के बाद उत्तर प्रदेश में राज्य सभा चुनावों से बीजेपी के दो उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया है। राज्य में राज्य सभा की कुल 10 सीटों पर चुनाव होने हैं। इसके लिए बीजेपी ने कुल 11 उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन उप चुनावों के नतीजों ने बीजेपी को झकझोर दिया है। नतीजतन, पार्टी के 10वें और 11वें उम्मीदवार विद्यासागर सोनकर और सलिल विश्नोई ने गुरूवार को अपना नाम वापस ले लिया। ये दोनों नेता बीजेपी की राज्य इकाई में महासचिव हैं। हालांकि, अभी भी बीजेपी की तरफ से नौ उम्मीदवार मैदान में डटे हुए हैं। 403 सदस्यों वाली यूपी विधान सभा में बीजेपी के कुल 324 विधायक हैं जिसके बूते पार्टी आठ लोगों को आसानी से राज्य सभा भेज सकती है लेकिन सपा और बसपा उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ने के लिए बीजेपी ने अन्य उम्मीदवार खड़े किए थे।
उप चुनावों के नतीजों के बाद अब माना जा रहा है कि बीजेपी के आठ और सपा के एक उम्मीदवार तो आसानी से राज्य सभा के लिए चुनाव जीत सकते हैं मगर 10वीं सीट पर बसपा के उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर के लिए अभी भी राह आसान नहीं क्योंकि बीजेपी उन्हें हराने के लिए नौंवें उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को अभी भी मैदान में डटाए हुई है। बता दें कि सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए सांसद नरेश अग्रवाल ने ऐलान किया है कि उनके बेटे और सपा से विधायक नितिन अग्रवाल राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देंगे।
बता दें कि यूपी में राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए एक प्रत्याशी को कुल 37 वोटों की दरकार है। इस लिहाज से सपा उम्मीदवार जया बच्चन को चुनने के बाद पार्टी के पास 10 वोट सरप्लस रह जाएंगे। अगर नितिन अग्रवाल को माइनस कर दें तो यह आंकड़ा 9 रह जाएगा। बसपा के कुल 19 विधायक हैं। इनके अलावा कांग्रेस के 7 और निषाद और रालोद के एक-एक विधायक भी बसपा उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं। अगर ऐसी सूरत रही तो 37 वोटों के साथ बसपा के भीमराव अंबेडकर संसद के उपरी सदन में पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं।
हालांकि, राजनीतिक जानकार कहते हैं कि बीजेपी बसपा के हाथी को रोकने के लिए सपा के नाराज शिवपाल गुट के संपर्क में है लेकिन बदली परिस्थितियों में अब यह कहना मुश्किल हो गया है कि क्या सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नाराज चाचा शिवपाल सिंह यादव उस दौर में साइकिल को पंक्चर करने की साजिश रचेंगे जब साइकिल हाथी के सहयोग से दौड़ने लगी हो। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अगर शिवपाल ने भितरघात नहीं किया तो सपा-बसपा की दोस्ती कुछ और रंग दिखा सकती है।