…तो 2019 में यूपी में 50 लोकसभा सीट हार सकती है बीजेपी, ये है गणित

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए कई संभावनाओं को जन्म दिया है। अब इस बात की चर्चा हो रही है कि क्या 2019 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आ सकते हैं। इस संभावना के पीछे का गणित दोनों पार्टियों का लुभा रहा है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के डाटा का विधानसभावार विश्लेषण करने से पता चलता है कि यदि एसपी और बीएसपी के वोटों को जोड़ दिया जाए तो बीजेपी लोकसभा की 50 सीटें हार सकती है। अगर एसपी और बीएसपी के वोटों को एक साथ रखकर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में इस संभावित गठबंधन को 80 लोकसभा सीटों में से 57 सीटें मिलती दिख रही हैं। जबकि बीजेपी के पास मात्र 23 सीटें रह जाती हैं।

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई में NDA ने 80 में से 73 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में सपा और बसपा ने अलग अलग उम्मीदवार खड़े किये थे। पिछले साल के विधानसभा चुनाव में भी एसपी और बीएसपी अलग-अलग थीं। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली जबकि बीएसपी मात्र 19 पर आकर सिमट गई है। उत्तर प्रदेश की 403 सीटों की विधानसभा में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ 325 सीटें जीती थीं।

हालांकि अगर 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी को मिले वोटों को अगर हर लोकसभा सीट में जोड़ दिया जाए तो बीजेपी के लिए अगले लोकसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी हो जाती है। आंकड़ों के मुताबिक अगर एसपी और बीएसपी के वोटों को जोड़ दिया जाए तो 57 लोकसभा सीटों पर इस गठबंधन को औसतन एक लाख 45 हजार वोटों की बढ़त हासिल हो जाती है। जबकि 23 सीटों पर बीजेपी की औसत बढ़त मात्र 58 हजार वोट है। इधर 2014 में बीजेपी जिन 73 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीती थी वहां पार्टी की औसत बढ़त 1 लाख 88 हजार वोट थे। आंकड़ों का गणित बताता है कि अगर बीएसपी-एपी के वोट को जोड़ दिया जाए तो बीजेपी जिन 23 सीटों पर आगे बताई जा रही है उनमें से महज चार सीटों, वाराणसी, मथुरा, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर पर ही बीजेपी जीत का अंतर एक लाख वोटों से अधिक ले जा सकेगी। बता दें कि ये आंकड़े 2017 के विधानसभा वोट से लिये गये हैं। 2017 के विधानसभा में एसपी और कांग्रेस ने साथ चुनाव लड़ा था, इसलिए यह आकलन करते समय जिन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किये थे वहां पर कांग्रेस को मिले वोटों को एसपी का वोट माना गया है।

यहां यह बताना जरूरी है कि ये अनुमान आंकड़ों के अलग-अलग संभावनाओं द्वारा लगाये गये हैं। इन आकड़ों को चुनाव में आने वाले नतीजे की एकदम सही तस्वीर नहीं कही जा सकती है। चुनावी गणित और अनुमान, नतीजों के धरातल पर सही उतरते हैं या नहीं यह कई तथ्यों पर निर्भर करता है। इनमें दोनों पार्टी के समर्थकों, वोटरो के बीच सामंजस्य और उनकी इच्छा शक्ति अहम है। कई बार दो दलों के बीच गठबंधन होने की वजह से कई नेताओं के टिकट कट जाते हैं और ऐसे नेता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से गठबंधन के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं।

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