आईएस ने मारे 39 भारतीय: विदेश मंत्री के पास थे गलत खुफिया इनपुट, अंधेरे में रही सरकार

इराक के मोसुल में 39 भारतीयों मजदूरों के मारे जाने की खबरें 2014 में ही उड़ीं थीं। तब सरकार इस बात को मानने को तैयार ही नहीं थी। क्योंकि तब विदेश मंत्रालय के पास मौजूद इंटेलीजेंस इनपुट इस बात से इन्कार करते थे। सरकार को सभी भारतीयों के जिंदा होने की उम्मीद थी। खुद पिछले साल जुलाई में लोकसभा में बोलते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दावा किया था कि उनके पास छह ऐसे भरोसेमंद सूत्र हैं, जिनके जरिए पता चलता है कि सभी भारतीय जिंदा हैं। मगर, चार साल बाद सरकार ने मजदूरों की मौत की पुष्टि की है। कहा जा रहा है कि मौत की पुष्टि में हुई इस देरी से पता चलता है कि सरकार मजदूरों की मौत को लेकर अंधेरे में रही। अब जब सारे सुबूत मिल गए, तब जाकर सरकार को मौत की आधिकारिक पुष्टि करनी पड़ी।

मौत की खबरों पर तब क्या कहा था सुषमा नेः 26 जुलाई 2017 को लोकसभा में सुषमा स्वराज ने मोसुल में लापता भारतीय मजदूरों को लेकर बयान दिया था। उन्होंने मौत की खबरों को बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि अभी सरकार को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला है। न ही शव मिले हैं, न ही डीएनए या खून के नमूने से मजदूरों की मौत की पुष्टि हुई है। बकौल सुषमा,”उनके लिए यह कहना बेहद आसान है कि सभी मजदूर मारे गए, तब कोई सवाल नहीं करेगा यहां तक कि परिवार के लोग भी नहीं बोलेंगे, मगर बिना किसी सुबूत के किसी को मरा करार देना अपराध है और वे यह अपराध नहीं करेंगी।” सुषमा स्वराज ने कहा था कि इराक सरकार ने भी मजदूरों के मारे जाने की कोई पुष्टि नहीं की है।

खोजबीन को गए थे विदेश राज्यमंत्रीः सुषमा स्वराज ने लोकसभा में बताया कि लापता मजदूरों की घटना की पड़ताल के लिए विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह भी इराक गए थे। जहां पता चला कि कार्यस्थल से अपहरण के बाद भारतीय मजदूरों को आईएस आतंकी बादूस जेल लेकर गए। वहीं पर उनके बंद होने की सूचना है। हालांकि बाद में इराकी सेना और आतंकियों के बीच हुई लड़ाई में जेल उजड़ गई। जिसके बाद सरकार ने जेल में किसी के बंद न होने की सूचना दी थी। हालांकि भारत दौरे के दौरान इराक के विदेश मंत्री अल जाफरी ने कहा था कि वे भारतीयों के जिंदा या मरने के बारे में आश्वस्त नहीं हैं, मगर उनकी सरकार खोजबीन को लेकर हरसंभव कोशिश कर रही है। सुषमा स्वराज के मुताबिक इस्लामिक स्टेट आतंकियों ने भी कोई जिम्मेदारी नही ली, इस नाते मौत की पुष्टि नहीं होती है।

कैसे हुआ था खुलासाः दरअसल इराक में निर्माण परियोजना के लिए भारत और बांग्लादेश से मजदूर गए थे। जून 2014 के दूसरे सप्ताह में उनका आतंकियों ने अपहरण कर लिया था। कुछ समय बाद उन्होंने 55 बांग्लादेशी मजदूरों को रिहा किया। इस दौरान एक भारतीय मजदूर हरजीत मसीह भी खुद को बांग्लादेशी बताकर आतंकियों के चंगुल से बच निकला। उसने भारत पहुंचकर 39 अन्य भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि की। हालांकि भारत सरकार ने उसके दावे पर भरोसा नहीं किया। क्योंकि न तो सरकारी खुफिया एजेंसियां और न ही इराक की सरकार इस बात की पुष्टि करती थी।सुषमा स्वराज ने लोकसभा में कहा था कि 24 नवंबर 2014 में उन्हें छह भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि भारतीय जिंदा हैं।

अब कैसे हुई मौत की पुष्टिः तीन साल की लंबी कोशिश के बाद मोसुल में 39 भारतीयों की मौत का खुलासा हुआ है। खुदाई के दौरान निकले शवों डीएनए टेस्ट कराने के बाद भारतीय मजदूरों की मौत की पुष्टि हुई। सबसे पहले संदीप नामक मजदूर का डीएनए मैच हुआ। सुषमा के मुताबिकि डीप पेनिट्रेशन रडार के जरिए शवों को देखकर निकाला गया। 39 में से 38 भारतीय मजदूरों का डीएनए मैच हुआ। 39 वें मजदूर के डीएनए की जांच चल रही है। विदेश मंत्री के मुताबिक शवों को लेने के लिए विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह इराक जाएंगे और फिर हवाई जहाज से शव भारत लाया जाएगा। अमृतसर, पटना और अमृतसर में जहाज भेजकर शवों को घर पहुंचाया जाएगा।

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