उत्तराखंड : रामभरोसे राजधानी मुद्दा, पहाड़ों के अस्तित्व का सवाल

गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाए जाने को लेकर सूबा फिर से आंदोलित है। गैरसैण में बजट सत्र के पहले दिन विधानसभा भवन के बाहर गैरसैण को राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और गैरसैण राजधानी बनाओ संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया। वही कांग्रेस ने विधानसभा में इस मामले को गरमाया। भाजपा सदन के भीतर और बाहर गैरसैण के मुद्दे को लेकर बचाव की मुद्रा में नजर आ रही है। उत्तराखंड क्रांति दल, वामपंथी दल और गैरसैण स्थायी राजधानी बनाओ संयुक्त संघर्ष समिति बीते कई सालों से गैरसैण को सूबे की स्थायी राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर संघर्षरत है। राज्य में बीते साल भाजपा की सरकार बनने पर आंदोलनकारी ताकतों ने इस मुद्दे को और जोरशोर से उठाया है। इस मुद्दे पर उक्रांद, वामपंथी दलों के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन सिंह रावत गांववासी, राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुशीला बलूनी, भाजपा युवा मोर्चा के जुझारू नेता रविंद्र जुगरान भी जुड़ गए हैं, जिससे भाजपा सकते में है। भाजपा इस मुद्दे पर सूबे में दो फाड़ होती दिखाई दे रही है। भाजपा ने बीते विधानसभा चुनाव में अपने चुनावी घोषणापत्र में गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का वादा किया था। जिससे अब ये मामला भाजपा के गले की हड्डी बनता जा रहा है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहन सिंह रावत गांववासी का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही गैरसैण के मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं और गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाए जाने को लेकर गंभीर नही हैं। इन दोनों दलों को खतरा है कि गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने से सूबे के मैदानी क्षेत्रों में इनका वोट बैंक खिसक जाएगा। उत्तराखंड राज्य का निर्माण पर्वतीय क्षेत्रों की जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए किया गया था और सूबे की पर्वतीय क्षेत्रों की जनता की भावनाओं की उपेक्षा कर साजिश के तहत देहरादून को सूबे की अंतरिम राजधानी बना दिया गया। वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा कि गैरसैण को लेकर सूबे में जो आंदोलन चल रहा है उसके पीछे कुछ राजनितिक ताकतों का हाथ है। भट्ट ने कहा कि किसी को बुरा लगे या भला पर अभी गैरसैण को स्थायी राजधानी नहीं बनाया जा सकता। उसे स्थायी राजधानी बनने के लिए वहां पीने के पानी, आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। इसलिए गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाये जाने का सवाल ही पैदा नही होता है। भाजपा का वादा गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का है और उस निर्णय की तरफ राज्य सरकार बढ़ रही है।

पहाड़ों के अस्तित्व का सवाल
उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट का मानना है कि गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाए जाने को लेकर सभी दल 17 बरस से राजनीति कर रहे है। पर्वतीय जिलों के लोग आज भी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। गैरसैण को जल्दी ही सूबे की स्थायी राजधानी नहीं बनाया गया तो अगले कुछ सालों में पहाड़ों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।

जुबानी जमा खर्च
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि साल 2012 में कांग्रेस सरकार ने ही गैरसैण में विधानसभा भवन, विधायक आवास और अन्य प्रशासनिक भवनों की नींव डालकर इस क्षेत्र के ढांचागत विकास की शुरुआत की थी और कांग्रेस सरकार ने ही पहला विधानसभा सत्र गैरसैण में आहूत किया था। जबकि भाजपा इस मुद्दे पर जुबानी जमा खर्च कर रही है।

वोट बैंक का डर
राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर अवनीत कुमार घिल्डियाल कहते है कि पर्वतीय क्षेत्र की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में ही होनी चाहिए। ताकि इन क्षेत्रों का विकास हो और पलायन रुके। राज्य गठन के 17 साल बाद भी सूबे की राजधानी पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। दरअसल, राजनीतिक दलों को स्थायी राजधानी के मुद्दे पर फैसला लिए जाने से अपने वोट बैंक के खिसक जाने का डर सता रहा है।

गैरसैण सबसे उपयुक्त
वामपंथी विचारक रतन मणि डोभाल कहते हैं कि देहरादून में बैठकर इस पहाड़ी प्रदेश के लिए मैदान केंद्रित योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों के सीमावर्ती जिलों से तेजी से पलायन हो रहा है। गांवों के गांव खाली हो रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्र की राजधानी पहाड़ी क्षेत्र में ही बननी चाहिए। उसके लिए गैरसैण सबसे उपयुक्त है।

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