प. बंगाल: समलैंगिकता का संदिग्ध कबूलनामा, स्कूल की कार्रवाई पर विवाद
पश्चिम बंगाल में क्या अब स्कूल प्रबंधन और राज्य सरकार छात्र-छात्राओं की समलैंगिकता के बारे में फैसला करेंगे? हाल में राजधानी कोलकाता के एक गर्ल्स स्कूल के प्रबंधन के फैसले और शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की टिप्पणी से उभरे विवाद के बाद मानवाधिकार संगठनों के कार्यकर्ता यही सवाल उठा रहे हैं। एक स्कूल की 10 छात्राओं से कथित रूप से जबरन यह कबूलनामा लिखाने पर बवाल मचा है कि वह लेस्बियन यानी समलैंगिक हैं। महानगर के कमला गर्ल्स स्कूल की प्रिंसिपल ने हाल में 10 छात्राओं से यह लिखवाया कि वे समलैंगिक हैं। उनसे कहा गया कि अगर वह ऐसा नहीं करती हैं तो उन सबको स्कूल से निकाल दिया जाएगा। स्कूल प्रबंधन का दावा है कि कक्षा की दूसरी छात्राओं ने इस बात की शिकायत करते हुए कहा था कि ये छात्राएं कक्षा में भी समलैंगिकों की तरह व्यवहार करती हैं। उसके बाद प्रिंसिपल ने 12 मार्च को सभी 10 छात्राओं के अभिभावकों को स्कूल में बुला कर छात्राओं के कथित समलैंगिक रवैए की शिकायत की और कहा कि अगर वह अपनी बेटियों का रवैया नहीं सुधारते हैं तो उनको स्कूल से निकाल दिया जाएगा।
स्कूल की कार्यवाहक प्रिंसिपल शिखा सरकार कहती हैं कि कक्षा की दूसरी लड़कियों ने इन छात्राओं के रवैए की शिकायत की थी। कई शिकायतें मिलने के बाद हमने अनुशासनात्मक कारर्वाई का फैसला किया। हमने आरोपी छात्राओं को बुलाया तो उन्होंने अपनी गलती मान ली। शिखा ने बताया कि दोषी छात्राओं से लिखित रूप से अपनी गलती कबूल करने को कहा गया और उन्होंने ऐसा ही किया। वे कहती हैं कि अब इस मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि हमारा मकसद उन छात्राओं का रवैया सुधारना है। इसलिए उनके अभिभावकों को भी इसकी जानकारी देते हुए उनसे जरूरी कदम उठाने को कहा गया है। लेकिन दूसरी ओर, अभिभावकों में इस बात को लेकर भारी नाराजगी है। उनका कहना है कि छात्राओं से जबरन कागज पर लिखवाने से पहले ही उनके मता-पिता को स्कूल में बुला कर इसकी जानकारी देनी चाहिए थी। अब इस विवाद के बढ़ने की वजह से उन छात्राओं पर हमेशा के लिए एक कलंक लग गया है। एक अभिभावक सवाल करते हैं कि बिना किसी जांच और सबूत के महज कुछ छात्राओं की कथित शिकायत के आधार पर स्कूल प्रबंधन द्वारा किसी को समलैंगिक करार देना कहां का न्याय है?
विवाद सामने आने के बाद राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने स्कूल की कारर्वाई का समर्थन किया। वे कहते हैं कि समलैंगिकता हमारी संस्कृति के खिलाफ है। हमें अपनी संस्कृति बनाए रखनी चाहिए। अगर स्कूल को उन छात्राओं का रवैया अश्लील लगा तो वह कारर्वाई के लिए स्वतंत्र है। उन्होंने बताया कि मीडिया में इस आशय की खबरों के बाद मंत्रालय ने स्कूल से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है। वह कहते हैं कि लेकिन अगर सचमुच छात्राओं पर लगे आरोप सही हैं तो स्कूल परिसर में ऐसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। उन्होंने कहा कि मामले की तह तक पहुंचने के लिए ही उन्होंने इस बारे में विस्तारित रिपोर्ट मांगी है।
इस बीच, समलैंगिक कार्यकर्ता धीरेश्वर जाना सवाल करते हैं कि आखिर महज शिकायत के आधार पर स्कूल प्रबंधन ने कबूलनामा क्यों लिखवाया? वह कहते हैं कि ऐसे तो किसी को भी समलैंगिक ठहराया जा सकता है। एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता देवेश मंडल कहते हैं कि कोई व्यक्ति समलैंगिक है या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है। सबको अपने जीने का तरीका चुनने का अधिकार है। आखिर समलैंगिक होना कोई अपराध तो नहीं है? समलैंगिकों के हित में काम करने वाले अवधेश कुमार कहते हैं कि पहले तो स्कूल प्रबंधन ने गलत किया। ऊपर से शिक्षा मंत्री के बयान ने इस विवाद को और बढ़ा दिया है। वह कहते हैं कि अब शिक्षकों और राजनेताओं को भी यह बताया जाना चाहिए कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है।